महालक्ष्मी

  • Updated: Nov 13 2023 06:35 PM
महालक्ष्मी

माता लक्ष्मी हिन्दू धर्म की प्रमुख तीन देवियों में से एक हैं | ये भगवान विष्णु की पत्नी हैं | माता लक्ष्मी धन, सम्पदा और समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं | माता लक्ष्मी के समृद्ध, स्वस्थ और सुव्यवस्थित स्वरुप को ही "श्री" कहा जाता है | श्री का यह रूप जहाँ जहाँ विद्धमान होता है वहां पर दरिद्रता, कुरूपता का वास नहीं रहता है |

लक्ष्मी शब्द को सामान्य तौर पर धन, सम्पदा के लिए उपयोग करते हैं परन्तु यह चेतना का एक गुण है जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुंओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है |

उत्त्पति और रूप

माता लक्ष्मी की उत्पति यूँ तो आदिकाल से है परन्तु दुर्वाशा ऋषि के श्राप से जब देवता और भगवन विष्णु जब श्रीविहीन हो गए थे तब लक्ष्मी जी समंदर में समां गयी थी | तब देवता और असुरों ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया था तब लक्ष्मी जी के साथ साथ समुन्द्र से और भी रत्न परकत हुए थे | समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसीलिए इस दिन को लक्ष्मी जयंती भी कहा जाता है | देवी लक्ष्मी का जन्मदिन शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है और उसी दिन माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से विवाह किया था |

लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है। कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल-सौन्दयर् और प्रामाणिकता के प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन-उलूक, निर्भीकता एवं रात्रि में अँधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।

धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी के 8 स्वरूपों का वर्णन मिलता है, जिन्हें अष्ट लक्ष्मी भी कहा जाता है। माता के ये अष्ट लक्ष्मी स्वरूप अपने नाम और रूप के अनुसार भक्तों के दुख दूर करते हैं तथा सुख, समृद्धि प्रदान करते हैं।

लक्ष्मी जी के 8 स्वरुप

1. आदि लक्ष्मी

श्रीमदभागवत पुराण में आदि लक्ष्मी को ही मूल लक्ष्मी, महा लक्ष्मी और लक्ष्मी का पहला स्वरुप कहा गया है | आदि लक्ष्मी ही भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ में निवास करती है और जगत का भरण पोषण भी करती हैं |

2. धन लक्ष्मी

धन लक्ष्मी महा लक्ष्मी का दूसरा रूप है | इनके एक हाथ में धन से भरा कलश और दुसरे हाथ में कमल का फूल रहता है | धन लक्ष्मी भक्तों की आर्थिक परेशानियों को दूर करती हैं |

3. धन्य लक्ष्मी

धान्य लक्ष्मी महालक्ष्मी का तीसरा रूप है | ये संसार में अनाज और खाद्य की अधिष्ठात्री हैं | धान्यलक्ष्मी ही अन्नपूर्णा का रूप भी हैं और इनको  प्रसन्न रखने के लिए कभी भी भोजन या किसी भी खाद्य पदार्थ का अनादर नहीं करना चाहिए |

4. गज लक्ष्मी

गज लक्ष्मी महालक्ष्मी का चौथा स्वरूप हैं | ये हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं। मां गज लक्ष्मी कृषि और उर्वरता की अधिष्ठात्री हैं |

5. संतान लक्ष्मी

संतान लक्ष्मी महालक्ष्मी का पांचवां स्वरुप है | संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं। माना जाता है कि संतानोत्पति के लिए इनकी विशेष पूजा की जाती है और संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं।

6. वीर लक्ष्मी

वीर लक्ष्मी को महालक्ष्मी का छठा स्वरुप मन जाता है जो अपने भक्तों को वीरता, साहस और ओज प्रदान करती हैं | वीर लक्ष्मी के हाथों में तलवार और ढाल होती है और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए भक्त इनकी पूजा अर्चना करते हैं |

7. जय लक्ष्मी

महालक्ष्मी के सातवें स्वरूप को जय लक्ष्मी या विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। इस रूप की साधना से भक्तों को जीवन के हर क्षेत्र में जय&ndashविजय की प्राप्ति होती है। जय लक्ष्मी मां यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं।

8. विद्या लक्ष्मी

महालक्ष्मी के आठवें स्वरूप को विद्या लक्ष्मी कहते है। ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती हैं। इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है। इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।