कांचीपुरम

  • Updated: Aug 06 2023 05:43 PM
कांचीपुरम

कांचीपुरम तमिलनाडु राज्य में एक जिला है और जिले का मुख्य नगर है | कांची पलर नदी के किनारे बसा हुआ एक सुन्दर शहर है | कांची का अर्थ ब्रह्म की पूजा और पुरम का अर्थ होता है शहर, मतलब ब्रह्म को पूजने वाला शहर | एक मान्यता है के ब्रह्मा जी ने देवी के दर्शन के लिए यहाँ तप किया था |

कांचीपुरम पूरी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक हैऔर इसे मंदिरों के स्वर्ण शहर के रूप में भी जानते हैं | यह तमिलनाडु का मुख्य नगर है जो अपने सुंदर मंदिरों के साथ और आध्यात्मिकता के कारण विश्व प्रसिद्ध है और ये अपने स्थापत्य वैभव के लिए प्रचलित हैं। इसे वाराणसी के बाद दूसरा सबसे पवित्र शहर माना जाता है, और हजारों श्रद्धालु इस शहर में आकर एकांत और आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति करते हैं।

कांची की सुंदरता का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास जी ने लिखा है

"पुष्पेशु जाति, पुरुषेशु विष्णु, नारीशु रम्भा, नगरेशु कांची"

अर्थात जैसे पुष्प में पारिजात, पुरुषों में विष्णु भगवान, नारियों में जो रम्भा की सुंदरता है वही नगरों में कांची की है |

एक मान्यतानुसार इस क्षेत्र में पौराणिक काल में ब्रह्माजी ने देवी के दर्शन के लिये तपस्या कि था। इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रदालु यहाँ आते है, उन्हें आंतरिक आनंद के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

कांचीपुरम के मुख्य स्थल

कैलाशनाथ मंदिर

कांची शहर के पश्चिम में स्थित यह मंदिर कांचीपुरम का सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे शानदार मंदिरों में एक है। इस मंदिर को 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने अपनी पत्नी की प्रार्थना पर बनवाया था। मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दर्शाया गया है।

बैकुंठ पेरूमल मंदिर

भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन पल्लवमल्ला ने करवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु को बैठे, खड़े और आराम करती मुद्राओं में दिखाया गया है। मंदिर की दीवारों में पल्लव और चालुक्यों के युद्धों के दृश्य भी दर्शाये गए हैं। मंदिर में एक विशाल हॉल भी है जिसमे 1000 स्तम्भ हैं जो पर्यटकों को बहुत आकषित करता है। प्रत्येक स्तम्भ में नक्काशी से तस्वीर उकेरी गई हैं जो उत्तम कारीगरी को दर्शाता है।

कामाक्षी अम्मन मंदिर

यह मंदिर कांचीपुरम के शिवकांची में है। कामाक्षी देवी मंदिर हिन्दू धर्म के पवित्र 51 शक्ति पीठों में से एक है। मंदिर में कामाक्षी देवी की बहुत सुन्दर प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता हैं। इष्टदेवी कामाक्षी देवी की मूर्ति योग मुद्रा में बैठी हुयी है जिसका दक्षिण पूर्व की और है |

मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसे कामाक्षीदेवी या कामकोटि भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है के आदि शंकराचार्य ने कामाक्षी देवी के महत्त्व से लोगों को परिचित कराया था और वो स्वयं भी कामाक्षी देवी में आस्था रखते थे | मंदिर परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।

कहा जाता है कि कामाक्षी देवी को उनकी आंखों की सुंदरता के कारण ही कामाक्षी नाम दिया गया था। वस्तुतः कामाक्षी न केवल दुर्लभ है, बल्कि कुछ अक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है। यहां पर '' कार ब्रह्मा का, '' कार विष्णु का और '' कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का, 'मां' महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है।

एकाम्बरेश्वर मंदिर

यह अत्यंत प्राचीन एवं भव्य मंदिर जिसका राष्ट्रीय भव्यता से परिपूर्ण पल्लव के शासकों ने करवाया था ये भगवान शिव को समर्पित है। 11 खंडों वाला यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है।

ग्रथों के अनुसार, इस मंदिर मे अनेक बरसों से एक आम का पेड़ है जो लगभग 3500 -4000 वर्ष पुराना जिसकी हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते है और इनका स्वाद भी अलग अलग होता है। इस पेड़ के नीचे माँ पार्वती ने भगवान महादेव शिव की पूजा की थी और माता पार्वती शिव जी को प्राप्त करने के लिए, उसी आम के पेड़ के नीचे मिटटी या बालू से ही एक शिवलिंग बना कर घोर तपस्या करनी शरू कर दी| जब शिवजी ने ध्यान मग्न पार्वती जी को तपस्या करते हए देखा तो महादेव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी जटा से गंगा जल को बहाना शुरू दिया। जल के तेज गति से पूजा मे बाधा पड़ने लगी तो माता पार्वती ने उस शिवलिंग जिसकी वह पूजा कर रही थी उसे गले लगा लिया जिसे से शिव लिंग को कोई नुकसान हो। भगवान शंकर जी यह सब देख कर बहुत प्रस्सन हए और माता पार्वती को दर्शन दिये। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने विवाह की इच्छा व्यक्त की। महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया। आज भी मंदिर के अंदर वह आम का पेड़ हरा भरा देखा जा सकता है। माता पार्वती और शिव जी को समर्पित यह मंदिर एकबारनाथ मंदिर है।

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