मथुरा

  • Updated: Oct 01 2023 06:55 PM
मथुरा

मथुरा उत्तर प्रदेश राज्य में एक बहुत महत्वपूर्ण नगर है | मथुरा का अस्तित्व 7500 वर्ष पुराना है |

स्थापना और नाम

मथुरा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मधुपुर के नाम से किया गया है जहाँ मधुदानव रहता था और उसी के द्वारा यमुना नदी के किनारे मथुरा नगरी बसाई गयी थी | जिसको उस समय मधुपुरी कहा जाता था | मधुदानव का पुत्र लवणासुर था उसी ने भी मथुरा को सजाया और संवारा था | लवणासुर को ही युद्ध में हराकर श्री राम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने मुक्त कराया था और वर्षों तक राज्य किया था |

धार्मिक महत्त्व

मथुरा यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है  और श्री कृष्ण की जन्मभूमि है | द्वारका से पूर्व भगवान कृष्ण ने यहीं (मथुरा जिले में अलग अलग जगह) पर अपना बचपन बिताया था और अनेक लीलाएं की थी | मथुरा का हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है | मथुरा के चरों और शिव मंदिर हैं पूर्व में पिपलेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर और उत्तर में गोकर्णेश्वर और पश्चिम में भूतेश्वर महादेव स्थित हैं | गर्गसंहिता में मथुरा का वर्णन करते हुए कहा गया है के "पुरियों की रानी कृष्णापुरी मथुरा बृजेश्वरी है, तीर्थेश्वरी है, यज्ञ तपोनिधियों की ईश्वरी है यह मोक्ष प्रदायिनी धर्मपुरी मथुरा नमस्कार योग्य है।"

मथुरा में पर्यटन

मथुरा एक बहुत बड़ा जिल है जिसमे अनेक पर्यटन स्थल है जिनका धार्मिक महत्त्व है और श्रद्धालुओं के लिए पूजा और भजन के लिए प्रसिद्द हैं | मथुरा नगर में बहुत से पर्यटन स्थल हैं जिनमे से मुख्य ये हैं |

1. श्री कृष्ण जन्म भूमि

कंस ने देवकी और वासुदेव (कृष्ण के माता पिता) को जेल में कैद करके रखा था और जेल में ही श्री कृष्ण का जन्म हुआ था | उसी जगह आज एक भव्य मंदिर बना हुआ है और गर्भ गृह को आज भी यथास्थिति में रखा गया है | श्रद्धालु गर्भ गृह में बाल रूप के दर्शन के बाद मंदिर में श्री कृष्ण और राधा की मूर्तियों के दर्शन पाकर धन्य हो जाते हैं |

2. द्वारिकाधीश मंदिर

ये मंदिर मथुरा में राजाधिराज बाजार में यमुना नदी किनारे विश्राम घाट के समीप असकुंडा घाट पे स्थित है | मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा जी की मूर्ति विराजमान है |

3. वृन्दावन

वृन्दावन मथुरा (मुख्य नगर) से 15 KM दूर है और यहाँ पर श्री कृष्ण और राधा बहुत से मंदिर हैं | जिनकी सुंदरता और भव्यता देखते ही बनती है | वृन्दावन भगवन श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्द है | विष्णुपुराण में वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है जो अब वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर,बिहारी जी की बगीची, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर दर्शनीय हैं | इनमे से बांके बिहारी जी, राधावल्लभ और गरुड़ गोविन्द जी का मंदिर सबसे प्राचीन हैं |

मंदिरों के अतिरिक्त यमुना जी के घाट भी रमणीय और दार्श्निक हैं जिनमे ये प्रमुख हैं श्रीवरहा घाट, कालियदमन घाट, सूर्य घाट, युगल घाट, बिहार घाट और श्री राजघाट |

4. बरसाना

बरसाना मथुरा (मुख्य नगर) से 20 से 25 KM दूर है | श्री राधा रानी जी बरसाने की ही रहने वाली थी | राधा रानी वृषभानु नमक गौप की पुत्री थी इसलिए बरसाने का प्राचीन नाम वृषभानुपुर था | राधा रानी के पिता और कृष्ण के पिता (पालक) नन्द जी में गहरी मित्रता थी | यहाँ पर राधा रानी का प्रसिद्ध मंदिर राधा रानी मंदिर है जो बरसाने में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है | बरसाने में राधा जी को लाड़लीजी कहकर भी पुकारते हैं |

बरसाने में राधाष्टमी के दिन बहुत ही सुन्दर त्यौहार का आयोजन किया जाता है | बरसाने की लट्ठ मार होली तो विश्व प्रसिद्ध है ही

5. गोकुल

जब जेल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब जेल के सभी पहरेदार बेहोश हो गए थे और सभी ताले अपने आप खुल गए और वासुदेव जी श्री कृष्ण को मथुरा से युमना पार गोकुल में नन्द जी के घर पर छोड़ आये थे | भगवान श्री कृष्ण ने अपना बचपन यहीं बिताया था | यहाँ श्री कृष्ण जी के मंदिर है | गोकुल के पास महावन नाम का जंगल हुआ करता था जहाँ श्री कृष्ण के पिता जी की गाये चरती थी | गोकुल के पास और भी रमणीय स्थल हैं जैसे : रमण रेवती और चिंताहरण महादेव मंदिर |

6. गोवर्धन

गोवेर्धन मथुरा (मुख्य नगर) से 20KM दूर है | गोवर्धन पर्वत को गिरिराज कहा जाता है और श्रद्धालु दूर दूर से आकर इसकी परिक्रमा करते हैं जिसकी पैदल यात्रा लगभग 21KM की है | भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए पूरे पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठाया था |

गोवर्धन की बारें में भी दो तीन कथाओं का उल्लेख मिलता है, एक मान्यता ऐसी है कि इस पर्वत की खूबसूरती से पुलस्त्य ऋषि बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने द्रोणांचल पर्वत श्रृंखला से इसे उठाकर साथ लाना चाहा। तब गिरिराज जी ने पुलस्त्य ऋषि से कहा कि आप मुझे जहां भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा।

फिर इस पर्वत को लाते समय साधना के लिए ऋषि ने इस पर्वत को नीचे रख दिया। और वह दुबारा इस पर्वत को हिला भी नहीं सके। इससे क्रोधवश उन्होंन ये श्राप दे दिया कि उसका आकार रोज घटता जाएगा। और तभी से गोवर्धन पर्वत का आकार लगातार घटता जा रहा है।

परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं पर एक गिरिराज जी का मंदिर है जिसे दानघाटी मंदिर कहते है | परिक्रमा मार्ग में गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा,जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि प्रमुख स्थल आते हैं।

7. बलदेव

मथुरा से 22KM दूर एक बलदेव कस्बा है जहाँ पर श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी का बड़ा मंदिर है | यहाँ पर बलदाऊ जी की 8 फुट ऊँची और 3 फुट चौड़ी श्याम रंग की मूर्ति है | साथ ही श्री रेवती माता की भी मूर्ति है | ये दोनों मूर्तियां स्वम्भू है जो जमीन से प्रकट हुयी थी | बलदेव में होली का हुरंगा नाम से उत्सव बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है |

इसी तरह मथुरा में जहाँ जहाँ श्री कृष्ण ने लीलाएं की और जिन जगहों का श्री कृष्ण से सम्बन्ध है उस पूरे क्षेत्र को ब्रज भूमि कहा जाता है और श्रद्धालु पूरे ब्रज की भी पारकर्मा करते हैं जो लगभग 84 कोस (252 KM) की है

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