काशी जो अब वर्तमान में वाराणसी के नाम से जानी जाती है | काशी नगरी पौराणिक काल से है | वाराणसी का नाम दो नदी वरुणा और असी के संगम से बना है | काशी का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की पुराण | काशी की उत्त्पति के बारें में अलग अलग मान्यताएं है | काशी के विद्वानों का मानना है के काशी शिव की उपासना का सबसे प्राचीन केंद्र है | एक मान्यता ये भी है के काशी पहले भगवान विष्णु की पूरी थी और भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी का पांचवा सर काटा था था तो इसी तीर्थ में ब्रह्म हत्या से मुक्त हुए थे | तब से महादेव काशी में आवास करने लगे | काशी को बसाने वाले राजा काश थे जिससे इस नगरी का नाम काशी पड़ा |
काशी के बारे में एक और धारणा है के काशी नगरी का कभी अंत नहीं हो सकता | प्रलय के समय काशी नगरी को महादेव अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते है | काशी धार्मिक मान्यता के साथ साथ आध्यात्म का भी केंद्र है और नौवीं शताब्दी में शंकराचार्य ने विद्याप्रचार के लिए काशी को महत्वपूर्ण केंद्र बनाया था |
काशी को सभी भौतिक बंधनों से मुक्त मानते है | काशी को मोक्षदायिनी और भगवान शिव की राजधानी कहते है | हिन्दू धर्म में मान्यता है के काशी में प्राण त्यागने वालों को सीधा मोक्ष मिलता है | काशी में भगवान शिव के विश्वनाथ रूप की पूजा होती है जिसका अर्थ है पूरे विश्व के नाथ | काशी के और भी प्रचलित नाम हैं - काशी, वाराणसी, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, मुक्तिभूमि, शिवपुरी, त्रिपुरारिराजनगरीऔर विश्वनाथनगरी |
काशी के मंदिर और घाट
काशी में अगर गिना जाये तो लगभग 1,500 मंदिर हैं, जिनमें से बहुत से मंदिरों की परंपरा ऐतिहासिक है। इनमें विश्वनाथ, संकटमोचन और दुर्गा के मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। विश्वनाथ के मूल मंदिर की परंपरा की बात की जाये तो वो सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि युगों पुरानी है | यहाँ पर स्थित संकटमोचन मंदिर की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने कराई थी। दुर्गा के मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में मराठों ने करवाया था। काशी के घाटों पर भी अनेक मंदिर बने हुए हैं। इनमें गहड़वालों के द्वारा बनवाया गया राजघाट का 'आदिकेशव' मंदिर सबसे प्राचीन है।
प्रसिद्ध घाटों में दशाश्वमेध, मणिकार्णिंका, हरिश्चंद्र और तुलसीघाट प्रमुख है। शाश्वमेध घाट जयपुर नरेश जयसिंह द्वितीय का बनवाया हुआ मानमंदिर है। दशाश्वमेध घाट तीसरी सदी के भारशिव नागों के पराक्रम का स्मारक है। जब भी उन्होंने अपने शत्रुओं को परास्त किया, तो अपने विजयी यज्ञों का अनुष्ठान यहीं किया। इन दस विजयी यज्ञों के कारण वाराणसी का यह घाट "दशाश्वमेध घाट" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आधुनिक मंदिरों में भारत माता मंदिर और तुलसी मानस मंदिर प्रसिद्ध हैं।
भारत की सांस्कृतिक राजधानी होने का गौरव भी इसी प्राचीन नगरी को प्राप्त है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि काशी ने भारत की सांस्कृतिक एकता के निर्माण तथा संरक्षण में भारी योग दिया है। भारतेंदु आदि साहित्यकारों तथा नागरीप्रचारिणी सभा जैसी संस्थाओं को जन्म देकर काशी ने आधुनिक हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया है।
वाराणसी के घाटों का दर्शनीय हैं और इन पर समय बिताने पर मनसिक शांति का अनुभव होता है। एक पुरानी कहावत के अनुसार शामे अवध अर्थात् लखनऊ की शाम और सुबहे बनारस यानी वाराणसी का प्रात:काल देखने योग्य होता है।
काशी में विश्वनाथ मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है | विश्वनाथ शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में बड़ा उच्च स्&zwjथान है। ऐसी मान्यता है के जो एक बार इस मंदिर के दर्शन करता है और पवित्र गंगा में स्&zwjनान करता है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्&zwjवामी तुलसीदास जी भी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आते थे ।
वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने सन् 1780 में करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोना दान करके मंदिर में लगवाया था। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल इस मंदिर को विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, देवी पार्वती जब भगवन शिव के साथ कैलाश ओर जाना चाहती थी तब महादेव उन्हें काशी में लेकर आये और सदा के लिए खुद ज्योर्तिलिंग स्वरुप यहाँ विराजमान हो गए |
तुलसी मानस मन्दिर काशी के आधुनिक मंदिरों में एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर है। इसे सेठ रतन लाल सुरेका ने बनवाया था। ये मंदिर पूरी तरह संगमरमर से बना हुआ है और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सन॒ 1964 में किया गया।
इस मन्दिर के मध्य मे श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। रामचरितमानस लिखा हुआ इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर बहुत ही सुन्दर लगता है। दीवारों पर रामायण के प्रसिद्ध चित्रणों की नक्कासी की सुंदरता मनोहर है और देखते ही बनती है | इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान है | यहाँ अन्नकूट महोत्सव पर छप्पन भोग की झाँकी प्रस्तुत की जाती है जो बहुत ही मनमोहक लगती है। मंदिर के प्रथम मंजिल पर रामायण की विभिन्न भाषाओं में दुर्लभ प्रतियों का पुस्तकालय भी मौजूद है।
संकट मोचन हनुमान मंदिर हनुमान जी के पवित्र मंदिरों में से एक हैं। यह बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय के नजदीक दुर्गा मंदिर और नए विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में स्थित हैं। संकट मोचन का अर्थ है संकटों (दुखों) को हरने वाला।
ऐसी मान्यता हैं कि जहाँ महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन दिए थे इस मंदिर की स्थापना वहीं की गयी है। इस मंदिर की स्थापना महाकवि तुलसीदास जी ने की थी। महाकवि रामचरितमानस के लेखक थे। संत तुलसी दास जी ने अपने अंतिम दिनों में अपने बांह (भुजाओं) के असहनिय दर्द की अवस्था में संकट मोचन महराज के समक्ष " हनुमान बाहुक " की रचना किया था । इस मंदिर में नियमित रूप से आने वाले भक्तों पर भगवान हनुमान जी की विशेष कृपा होती हैं। जिन मनुष्यों की शनि की गृह दशा ख़राब होती है या शनि के क्रोध की दृष्टि से बचाव के लिए भी हनुमान जी की पूजा की जाती है | शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से शनि का प्रकोप भी हैट जाता है | ज्योतिषो का तो यह भी मानना हैं कि हनुमान जी की पूजा करने से मंगल और शनि ग्रह के बुरे प्रभाव तथा अन्य किसी और ग्रह के बुरे प्रभाव को भी बेअसर किया जा सकता हैं।
यहाँ हनुमान जयंति के दिन बहुत धूम धाम से मानते हैं और एक संगीत समारोह का भी आरम्भ होता है, जिसकी शुरूआत पं० कैली महाराज ने की थी। कार्तिक मास में नवाह पाठ होता है, जिसमें विश्व के प्रसिद्ध कथा वाचक राम कथा द्वारा लोगो को मनमोहित कर देते हैं ।
दुर्गा मंदिर काशी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख "काशी खंड" में भी मिलता है। इस मंदिर में माँ दुर्गा "यंत्र" रूप में विरजमान है। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, एवं माता काली की मूर्तियां अलग अलग मंदिर में स्थापित है। यहाँ श्रद्धालु मांगलिक कार्य कराने के लिए माँ के दर्शन के लिये आते है। मंदिर के अंदर हवन कुंड बने हुए हैं, जहाँ रोज हवन होते हैं। कुछ साधु यहाँ तंत्र पूजा भी करते हैं। सावन महिने में एक माह का बहुत मनमोहक मेला लगता है। एक कथा के अनुसार माँ दुर्गा दैत्य संहार करने के बाद यहाँ आराम किया था ,मदिर के नजदीक आनंद पार्क है, जहाँ पर आर्य समाज का प्रथम सास्त्रार्थ काशी के विद्वानों के साथ हुआ था।
एक मान्यता ये भी है की इस मंदिर का निर्माण 18वी शताब्दी में बंगाल की रानी भवानी ने करवाया था और ऐस अभी कहा जाता है की यह बीसा यंत्र स्थापित है यह पर 12 पाए विशाल मंडप बना हुआ है। इसी तरह के कई कारण से यह मंदिर प्रसिद्ध है |
नवरात्रि (माँ चंद्रघंटा पूजा), सिन्दूर तृतीया
रानी दुर्गावती जयंती, कृपालु जी महाराज जयंती
🪐 शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
विक्रम संवत् 2081