श्री दुर्गा चालीसा

  • Updated: Nov 13 2023 06:26 PM
श्री दुर्गा चालीसा

श्री दुर्गा चालीसा ||

 

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

अर्थात - सब प्रकार से सुख करने वाली माँ दुर्गा को मेरा नमस्कार है | सभी दुखों को करने वाली माँ अम्बा को मेरा बारम्बार प्रणाम है | आपकी ज्योति (आपका प्रकाश) अनंत है और तीनों लोकों में सर्वत्र उसका उजाला है |

 

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अर्थात - आपका मस्तक चन्द्रमा के समान तेजवान और प्रकाशवान है और मुख अति विशाल है। नेत्र रक्त के समान लाल हैं एवं भृकुटियां विकराल रूप वाली हैं। मां दुर्गा का यह रूप अत्यधिक सुहावना लगता है। इसका दर्शन करने से भक्तजनों को परम सुख की प्राप्ति होती है।

 

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

अर्थात - इस समस्त संसार को आपने ही शक्ति संपन्न किया है सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। इस समस्त जगत के पालन हेतु प्रकृति रूप में अन्न और धन प्रदान किया है। अन्नपूर्णा का रूप धारण कर आप ही जगत पालन करती हैं और आदि सुन्दरी बाला (सर्वप्रथम सुन्दर कन्या) के रूप में भी आप ही हैं।

 

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

अर्थात - प्रलयकाल में समय में आप ही शक्ति बनकर विश्व का नाश करती हैं। भगवान शंकर की अति प्रिया माता गौरी-पार्वती भी आप ही हैं। शिव सभी योगी आपका गुणगान करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सभी देवता के नित्य ध्यान में भी आप ही हैं।

 

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

अर्थात - आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि प्रदान की और उनका उद्धार किया। हे अम्बे माता! आप ही ने श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को चीरकर प्रकट हुई थीं।

 

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

अर्थात - आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योकिं वह आपके हाथों मारा गया। लक्ष्मीजी का रूप धारण कर आप ही क्षीरसागर में श्री नारायण के साथ शेषशय्या पर विराजमान हैं।

 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित जात बखानी॥

अर्थातक्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान हे दयासिन्धु देवी! आप मेरे मन की आशाओं को पूर्ण करें। हिंगलाज की देवी भवानी के रूप में आप ही प्रसिद्ध हैं। आपकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है।

 

 

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

अर्थातमातंगी देवी और धूमावाती भी आप ही हैं भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख की दाता आप ही हैं। श्री भैरवी और तारादेवी के रूप में आप जगत उद्धारक हैं। छिन्नमस्ता के रूप में आप भवसागर के कष्ट दूर करती हैं।

 

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥

अर्थातवाहन के रूप में सिंह पर सवार हे भवानी! लांगुर (हनुमान जी) जैसे वीर आपकी अगवानी करते हैं। आपके हाथों में जब कालरूपी खप्पर खड्ग होता है तो उसे देखकर काल भी भयग्रस्त हो जाता है।

 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

अर्थातहाथों में महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल उठाए हुए आपके रूप को देख शत्रु के हृदय में शूल उठने लगते है। नगरकोट वाली देवी के रूप में आप ही विराजमान हैं। तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।

 

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

अर्थातहे मां! आपने शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया रक्तबीज (शुम्भ-निशुम्भ की सेना का एक राक्षस जिसे यह वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से सैंकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) तथा शंख राक्षस का भी वध किया। अति अभिमानी दैत्यराज महिषासुर के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी।

 

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अर्थाततब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी का सेना सहित सर्वनाश कर दिया। हे माता! संतजनों पर जब-जब विपदाएं आईं तब-तब आपने अपने भक्तों की सहायता की है।

 

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥

अर्थातहे माता! जब तक ये अमरपुरी और सब लोक विधमान हैं तब आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे। हे मां! श्री ज्वालाजी में भी आप ही की ज्योति जल रही है। नर-नारी सदा आपकी पुजा करते हैं।

 

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥

अर्थातप्रेम, श्रद्धा भक्ति सेजों व्यक्ति आपका गुणगान करता है, दुख दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आते। जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से निश्चित ही मुक्त हो जाता है।

 

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

अर्थातयोगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं की आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है। शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया।

 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

अर्थातउन्होने नित्य ही शंकर भगवान का ध्यान किया, लेकिन आपका स्मरण कभी नहीं किया। आपकी शक्ति का मर्म (भेद) वे नहीं जान पाए। जब उनकी शक्ति छिन गई, तब वे मन-ही-मन पछताने लगे।

 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

अर्थातआपकी शरण आकार उनहोंने आपकी कीर्ति का गुणगान करके जय जय जय जगदम्बा भवानी का उच्चारण किया। हे आदि जगदम्बाजी! तब आपने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटाने में विलम्ब नहीं किया।

 

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥

अर्थातहे माता! मुझे चारों ओर से अनेक कष्टों ने घेर रखा है। आपके अतिरिक्त इन दुखों को कौन हर सकेगा? हे माता! आशा और तृष्णा मुझे निरन्तर सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या भी दुखी करते हैं।

 

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥

अर्थातहे भवानी! मैं एकचित होकर आपका स्मरण करता हूँ। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए। हे दया बरसाने वाली अम्बे मां! मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिए और ऋद्धि-सिद्धि आदि प्रदान कर मुझे निहाल कीजिए।

 

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

अर्थातहे माता! जब तक मैं जीवित रहूँ सदा आपकी दया दृष्टि बनी रहे और आपकी यशगाथा (महिमा वर्णन) मैं सबको सुनाता रहूँ। जो भी भक्त प्रेम श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, सब सुखों को भोगता हुआ परमपद को प्राप्त होगा।

 

देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

अर्थातहे जगदमबा! हे भवानी! ‘देविदासको अपनी शरण में जानकर उस पर कृपा कीजिए।

 

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