रामवतार

  • Updated: Aug 30 2023 11:49 AM
रामवतार

रामवतार

श्री रामचन्द्राय:‌‌नमः: रां रामाय नमः

जन्म

श्री राम भगवान विष्णु के 7वें अवतार थे और रामायण ग्रन्थ श्री राम के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित है | रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यकुलवंशी राजा दशरथ जी ने अपने जीवन के चौथे चरण में पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप दशरथ जी की तीन रानियों से चार पुत्र का जन्म हुआ | श्री राम चारों में सबसे बड़े थे | कई कथानक अनुसार श्री राम की बड़ी बहन का भी वर्णन मिलता है जिनका नाम शांता था | श्री राम के तीन भाइयों के नाम क्रमशः भारत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न हैं | ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए. इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए. जब विवस्वान हुए तभी से सूर्यवंश का आरंभ माना जाता है| विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए| वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम (नाभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध. भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था |

जीवन और प्रमुख घटनाएं

बालपन और सीता स्वयंवर

प्रभु श्री राम का जन्म सूर्यवंशीय रघुकुल में अयोध्या पूरी में हुआ था | श्री राम ने अपने भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम के शिक्षा प्राप्त की थी | किशोरावस्था में श्री राम और लक्ष्मण को गुरु विश्वामित्र उन्‍हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए साथ ले गये। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस कार्य में उनके साथ थे। ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र, जो ब्रह्म ऋषि बनने से पहले राजा विश्वरथ थे, उनकी तपोभूमि बिहार का बक्सर जिला है। ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र वेदमाता गायत्री के प्रथम उपासक हैं, वेदों का महान गायत्री मंत्र सबसे पहले ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र के ही श्रीमुख से निकला था। कालांतर में विश्वामित्रजी की तपोभूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई। ताड़का नामक राक्षसी विश्वामित्रजी की तपोभूमि में निवास करने लगी थी तथा अपनी राक्षसी सेना के साथ बक्सर के लोगों को कष्ट दिया करती थी। समय आने पर विश्वामित्रजी के निर्देशन प्रभु श्री राम के द्वारा वहीं पर उसका वध हुआ। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया।  इस दौरान ही गुरु विश्‍वामित्र उन्हें मिथिला ले गये। वहां के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह आयोजित किया था। जहां भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे। जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, तब विश्‍वामित्र जी की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष उठा कर प्रत्‍यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया। उनकी प्रत्‍यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में वह महान धनुष घोर ध्‍‍वनि करते हुए टूट गया। इस प्रकार सीता का विवाह राम से हुआ | अयोध्या में राम सीता सुखपूर्वक रहने लगे। लोग राम को बहुत चाहते थे। उनकी मृदुल, जनसेवायुक्‍त भावना और न्‍यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी। राजा दशरथ ने श्री राम के राजयभिषेक की घोषणा कर दी और श्री राम के राजतिलक की तयारी होने लगी |परन्तु भरत की माता कैकई ने छल से राजा दशरथ से वचन में राम के लिए बनवास और भरत को राज्य देने के लिए विवस कर दिया

वनवास

कैकेयी ने दासी मन्थरा के उकसावे में आकर इन शर्तों को राजा दशरथ से प्रस्तुत किया: राजसिंहासन अयोध्या के लिए और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास। इस परिस्थिति में, राजा दशरथ ने पितृवचन का पालन करते हुए राम से वनवास की स्वीकृति देने में संतुष्टि जाहिर की। सीता, पत्नी के रूप में, ने उस आदर्श पतिव्रता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राम के साथ वनवास की यात्रा पर जाने को सही माना। उनके साथ भाई लक्ष्मण भी चले, उनके वचनों का पालन करते हुए। भरत, न्याय की प्राथमिकता में मातृवचन का अनुसरण करते हुए, राजगद्दी की अधिकारी नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने अपने बड़े भाई राम की चरण-पादुकाओं को लेकर अयोध्या का प्रशासन किया और उनकी उपस्थिति में न्यायपालन किया।

सीता हरण एवं हनुमान और सुग्रीव से मित्रता

वनवास के समय, रावण ने सीता जी का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार, जब राम, सीता और लक्ष्मण कुटिया में थे तब एक स्वर्णिम हिरण की वाणी सुनकर, पर्णकुटी के निकट उस स्वर्ण मृग को देखकर देवी सीता व्याकुल हो गयीं। देवी सीता ने जैसे ही उस सुन्दर हिरण को पकड़ना चाहा वह हिरण या मृग घनघोर वन की ओर भाग गया। वास्तविकता में यह असुरों द्वारा किया जा रहा एक षडयंत्र था ताकि वो योजना अनुसार राम - लक्ष्मण को सीता जी से दूर कर सकें और सीता जी के हरण के लिए श्री राम को दूर किया जा सके | माता सीता षडयंत्र को न जान सकी और श्री राम से स्वर्ण हिरण को पकड़ कर लाने के लिए अनुरोध करने लगीं | ताकि उस अद्भुत सुन्दर हिरण को अयोध्या लौटने पर वहां ले जा कर पाल सकें

रामचन्द्र जी अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और लक्ष्मण जी से सीता की रक्षा करने को कहा। जब असुर मारीच (जो हिरन का रूप लिए हुए था) श्री राम के हाथों मारा गया तो उसने प्राण त्यागने से पूर्व सीता और लक्ष्मण को आवाज देने लगा जिसे सुनकर सीता जी को चिंता हुयी और उन्होंने लक्ष्मण को राम के पास जाने के लिए कहा | लक्ष्मण के जाने के बाद रावण एक भिक्षु का वेश धारण करके भिक्षा लेने के लिए सीता जी पास आया और रावण सीता जी को पुष्पक विमान में बल पूर्वक बैठाकर ले जाने लगा। भगवान राम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज में दर-दर भटक रहे थे। तब वे हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से मिले। हनुमान, राम के सबसे बड़े भक्त बने। सुग्रीव ने किष्किंधा का राज्य अपने भाई बलि से श्री राम की सहायता से ही प्राप्त किया था |

रावण का वध

हनुमान ने समुद्र पार लंका जाकर माता सीता का पता किया और सुग्रीव और उसकी वानर सेना सहित श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं। सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए राम ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की सहायता से रावण के सभी बंधु-बांधवों और उसके वंशजों को पराजित किया और रावण का वध किया | रावण से युद्ध के लिए रावण के भाई विभीषण ने श्री राम का साथ दिया था | लंका से वापिस आते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया।

भगवान राम बचपन से ही शान्‍त स्‍वभाव के वीर पुरूष थे। उन्‍होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था। इसी कारण उन्‍हें मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्‍यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज (अच्छे राज) की बात होती है तो रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। जब श्री राम का प्रोयजन पूरा हुआ और यमराज उनसे अपने धाम के लिए प्रस्थान के लिए अनुरोध करने लगे तब श्री राम सरयू नदी के जल में अपनी मानव देह त्याग कर अपने वैकुण्ठ धाम को चले गए |