Shivling - शिवलिंग

  • Updated: Feb 06 2024 05:04 PM
Shivling - शिवलिंग

शिवलिंग हिन्दू धर्म में भगवान शिव का प्रतीक होता है शिवलिंग | शिवलिंग को समझने में बहुत से लोग गलती कर बैठते हैं | शिवलिंग को सिर्फ पुरुषार्थ का प्रतीक समझना भी गलत है |

लिंग का आध्यत्मिक अर्थ होता है प्रतीक और प्रमाण | इस प्रकार शिव का प्रतीक या शिव का प्रमाण ही शिवलिंग कहलाता है | अथर्ववेद में स्तम्भ का उल्लेख मिलता है जो एक लिंगाकार है और सभी 33 कोटि (प्रकार) के देवताओं को समाये हुए है | पुराणों में ये भी उल्लेख है के सृष्टि की सर्वप्रथम रचना भी लिंगाकार हुयी थी | स्कंदपुराण में लिंग का अर्थ अनन्त ब्रह्माण्ड, आकाश और निराकार परमपुरुष प्रतीक है | शिवलिंग  सारे अनन्त ब्रह्मांड का अक्ष/धुरी है। निराकार का अर्थ यहाँ पर थोड़ा सा समझने की जरूरत है निराकार परमपुरुष का अर्थ है जिसका कोई आकार नहीं, वो जब आकार लेता है (या जो अप्रकट जब प्रकट होने लगता है तो वो दीर्घवृताकार होता है) तो वो एक स्तम्भ की भांति होता है जिसे लिंग कहा जाता है | पुराणों और वेदों के अनुसार सृष्टि को सँभालने वाला स्तम्भ ही शिवलिंग है | वेदों में और पुराणों में प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, ऊर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ/लिंग आदि का उल्लेख अलग अलग मिलता है |

ब्रह्माण्ड या सृष्टि में दो चीजें है एक तो पदार्थ और दूसरी है ऊर्जा | शरीर पदार्थ है और आत्मा ऊर्जा है | शिव हैं पदार्थ (पुरुष) और शक्ति हैं ऊर्जा (प्रकृति) तो शिवलिंग शिव और शक्ति का एक समुचित समन्वयता का प्रतीक भी है | न पदार्थ का ऊर्जा के बिना अस्तित्व रह सकता है और न ही ऊर्जा की पदार्थ के बिना उपयोगिता है तो शिवलिंग यही दर्शाता है के पुरुष और प्रकृति दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में सृजनता होती है | आध्यात्म में अरुचि और धार्मिक अज्ञानता के कारण ही शिवलिंग का सही अर्थ नहीं जान पाते और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं |

शिवलिंग ही शिव का प्रतीक है क्यूंकि शिव अजन्मे, अनादि, अनंत और निराकार हैं | जब शिव प्रकट हुए तो शिवजी कहलाये | क्यूंकि शिव एक तत्व है जो अनंत है और सबसे अधिक व्याप्त है | शिव का संस्कृत में अर्थ होता है - शि - व अर्थात जो है ही नहीं |

शिवलिंग की आकृति और माप के आधार पर शिवलिंग तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें उत्तम, मध्यम और अधम कहा गया है। मुख्यतः शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं एक ज्योतिर्लिंग जिन्हें स्वयंभू भी कहते हैं और दूसरा मानवनिर्मित शिवलिंग |

पुराणों में 6 प्रकार के शिवलिंगो का उल्लेख मिलता है |

1. देव लिंग

2. असुरलिङ्ग

3. अर्शलिंग

4. पुराणलिंग

5. मनुष्य लिंग

6. स्वयंभू लिंग    

देव लिंग - जिस शिवलिंग की स्थापना देवताओं द्वारा की जाती है उन्हें ही देव लिंग कहा जाता है | पुराणों में ऐसी कथाओं का वर्णन मिलता है जब देवताओं ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए और शिव की आराधना करने लिए शिवलिंग का निर्माण किया और ये शिवलिंग देवताओं द्वारा ही पूजनीय होते है |

असुर लिंग - देवताओं और मनुष्यों या साधु संतों से अलग बहुत से असुर भी शिव के भक्त हुए हैं जिनमे सबसे ज्यादा रावण को जानते हैं | इसी प्रकार असुरों द्वारा निर्मित या स्थापित लिंग ही असुर लिंग कहलाते हैं |

अर्श लिंग - वैदिक काल में ऋषियों और मुनियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श लिंग कहा जाता है | अगस्त ऋषि और मार्कण्डेय ऋषि द्वारा निर्मित शिवलिंग इस श्रेणी के उच्चतम उदहारण हैं |

पुराण लिंग - पौराणिक काल में मनुष्यों द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए निर्मित शिवलिंग पुराण लिंग कहे जाते हैं | इन शिवलिंग की पूजा पुराणों में वर्णित विधि द्वारा ही की जाती थी |

मनुष्य लिंग - प्राचीनकाल में और मध्यकाल में महापुरुषों, साधुओं और राजाओं द्वारा निर्मित शिवलिंग मनुष्यलिंग कहे जाते हैं | भारत में ऐसे अनेक मंदिर हैं जो राजाओं द्वारा निर्मित हैं और जहाँ देवताओं की मूर्तियां और शिवलिंग उनके द्वारा स्थापित किये गए हैं |

स्वयंभू लिंग - अपने नाम के अनुरूप ये वो शिवलिंग हैं जहाँ भगवान शिव स्वयं ज्योतिस्वरूप प्रकट हुए और सदा विराजमान हैं इन्ही को स्वयंभू लिंग या ज्योतिर्लिंग कहा जाता है | भारत में ऐसे द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं

1. सोमनाथ 2. मल्लिकार्जुन 3. महाकालेश्वर 4. ओंकारेश्वर 5. केदारनाथ 6. भीमाशंकर 7. कशी विश्वनाथ 8. त्रयंबकेश्वर 9. वैधनाथ 10. नागेश्वर 11. रामेश्वर 12. घृष्णेश्वर