नागेश्वर का का अर्थ नागों का ईश्वर होता है। रुद्र संहिता अनुसार भगवान को नागेशं दारुकावने कहा गया है। भगवान शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में हिंगोली से लगभग 26 मील की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त करेगा |
एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात। सर्वान कामानियाद् धीमान महापातकनाशनम॥
इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में पुराणों यह कथा वर्णित है की सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान शिव को अर्पित करके करता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था
उसे भगवान शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नांव से कहीं जा रहा था। उस राक्षस दारुक को यह उपयुक्त समय लगा सुप्रिय पर आक्रमण करने का और फिर अवसर देखकर उसने नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सुप्रिय सहित सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
सुप्रिय अपने साथ कैद अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। कारागार के पहरेदारों ने दारुक को जब सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुनाया तब उसे बहुत क्रोध आया और सुप्रिय को सबक सीखने के उद्देश्य से कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'ओ दुष्ट तू शिव की भक्ति छोड़ता क्यों नहीं और हमेश मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचता रहता है?' उसके धमकाने पर भी शिवभक्त सुप्रिय की समाधि पूजा बंद नहीं की। वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा और उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी भयभीत नहीं हुआ। वह भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि भगवान शिवजी इस विपत्ति के समय में महादेव उनकी रक्षा करेंगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर उस कारागार में एक चमकते हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।
बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया।
युग बीते और आया द्वापर युग श्री कृष्ण का जन्म युग। जब द्युत के खेल में कौरवों द्वारा पांचों पांडवों को पराजित किया गया था, तो द्यूत की शर्तों के अनुसार पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई थी। इस बीच, पांडवों ने पूरे भारत में भ्रमण किया। घूमते-घूमते वे इस दारुकवन में आ गए और इस स्थान पर उनके साथ एक गाय भी थी, वह गाय प्रतिदिन सरोवर में उतरकर दूध देती थी। एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन भीम ने गाय का पीछा किया और सरोवर में उतर गया और उसने भगवान महादेव को देखा तो उसने देखा कि गाय हर दिन शिवलिंग को दुध छोड रही थी। तब पांचों पांडवों ने शिवलिंग को सरोवर से बहार निकालने का निश्चय किया। और वीर भीम ने अपनी गदा से उस सरोवर के चारों ओर पर प्रहार किया और सभी ने महादेव के इस शिवलिंग दर्शन किये। श्री कृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नही हे यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया और फिर से समय के साथ वर्तमान मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना (यादव) वंश द्वारा बनाया गया था और कहा जाता है कि यह 13 वीं शताब्दी का है, जो सात मंजिला पत्थर की इमारत का बनाया था।
इसके उपरांत प्राचीन काल में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया। मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था | हर साल इस मंदिर मे लाखो के संख्या मे लोग आते है महाशिवरात्री के उत्सव पर यहा का सबसे बडा मेला लगता है ओर रथोत्सव मनाया जाता है महाशिवरात्री के ठीक 5 दिन बाद रथोत्सव मनया जाता है |
नवरात्रि (माँ चंद्रघंटा पूजा), सिन्दूर तृतीया
रानी दुर्गावती जयंती, कृपालु जी महाराज जयंती
🪐 शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
विक्रम संवत् 2081