बुद्धावतार भगवान् विष्णु के दश अवतारों में 9वें अवतार और चौबीस अवतारों में से तेईसवें अवतार माने गए हैं।
परिचय
मान्यताओं के अनुसार गौतम बुद्ध को सामान्यतः बुद्ध का अवतार माना जाता है। हालाँकि, पौराणिक ग्रंथों की व्याख्या से पता चलता है कि गौतम और बुद्ध अलग-अलग व्यक्ति रहे होंगे। जैसे भागवत स्कन्ध 1 अध्याय 6 के श्लोक 24 में स्पष्ट लिखा है
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।
बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥
अर्थात्, कलयुग में असुरों को मोहित करने नारायण कीकट प्रदेश (बिहार या उड़ीसा) में अजन के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। जबकि गौतम का जन्म वर्तमान नेपाल में राजा शुद्धोदन के घर हुआ था।
पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट देश में हुआ था। उनके पुण्यात्मा पिता का नाम &lsquoअजन बताया गया है।
कथा
एक समय की बात है, जब संसार में दैत्यों की शक्ति अत्यधिक बढ़ गई थी। दैत्यों के बढ़ते हुए बल के सामने, देवताओं की शक्ति कमजोर होने लगी थी, और दैत्य ने स्वर्ग के राज्य पर कब्जा कर लिया। देवताओं का स्वर्ग में विभव और आत्मा की शुद्धि का प्रतिष्ठान किया गया था, लेकिन उन्हें हमेशा यह डर था कि कब उनकी शक्तियों का पुनर्निर्माण होगा और स्वर्ग का अधिकार पुनः मिलेगा।
इस महत्वपूर्ण संकट में, दैत्यों ने देवराज इन्द्र को ढूंढने का निर्णय लिया और उनसे पूछा - "हमारे साम्राज्य को स्थिर बनाने का रहस्य क्या है?" देवराज इन्द्र ने उनके प्रश्न का सुदृढ उत्तर दिया - "स्थिरता के लिए यज्ञ और धर्म का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है।"
दैत्यों ने इस उपदेश का पालन किया और यज्ञों का अनुष्ठान किया। यह परिपालन उनकी शक्तियों को दिन-प्रतिदिन बढ़ाने लगी और आसुरी शक्तियों का प्रसार बढ़ गया। देवतागण ने हार मानकर भगवान विष्णु की शरण में जाकर उनसे सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया और उनके रक्षण के लिए भगवान बुद्ध के अवतार का आगमन हुआ।
भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश में मध्यम मार्ग की महत्वपूर्णता बताई, जो दुःख की पहचान, कारण और निवारण के लिए आठ आश्रयों के रूप में आये। उन्होंने अहिंसा का महत्व बताया और यज्ञ और पशुबलि की निंदा की। उनके उपदेशों के अनुसार, दैत्य ने यज्ञ और वैदिक आचरण को त्याग दिया और उनकी शक्तियों में कमी आई।
दैत्यों की कमजोरी का लाभ उठाते हुए, देवतागण उन पर हमला करके उन्हें पराजित कर दिया। देवताओं ने स्वर्ग का अधिकार पुनः प्राप्त किया और संसार में धर्म और सत्य की विजय को स्थापित किया।
भगवान बुद्ध के उपदेशों में, उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग की दिशा में प्रेरित किया। वे आष्टांगिक मार्ग का उपदेश देते हैं, जिसमें शील, समाधि, और प्रज्ञा आदि शामिल हैं। यह मार्ग उनके उपदेशों का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहाँ तक कि उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज को सत्य और धर्म की महत्वपूर्णता का संदेश दिया।
इस प्रकार, भगवान बुद्ध के आगमन ने दैत्यों के अधिकार को तोड़ दिया और धर्म की विजय को स्थापित किया। उनके उपदेशों ने लोगों को सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और धर्म और नैतिकता की महत्वपूर्णता को समझाया।
अष्टांग मार्ग
1. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना
5. सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक व्यायाम : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को क्रमबद्ध समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले  स्तर को पाना आवश्यक है। कुछ विचारकों की मान्यता है के इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि।
विक्रम संवत् 2082
विश्व पृथ्वी दिवस
🔆 मंगलवार, 22 अप्रैल 2025