खाटू श्याम

  • Updated: Jan 19 2024 01:46 PM
खाटू श्याम

बर्बरीक जिन्हे आज खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है, महाभारत काल के एक महान योद्धा थे | वो घटोत्कच (भीम पुत्र) और अहिलवती/मोरवी (दैत्यराज मूर की पुत्री) के सबसे बड़े पुत्र थे | इनके दो भाई और थे अंजनपर्व और मेघवर्ण जिनका उल्लेख महाभारत में मिलता है |

बर्बरीक पूर्वजन्म में एक यक्ष थे, जिनका पुनर्जन्म एक इंसान के रूप में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध-कला अपनी माँ से सीखी। मां आदिशक्ति की तपस्या कर उन्होंने उनसे त्रिलोकों को जीतने में सक्षम धनुष ष्राप्त किया साथ ही असीमित शक्तियों को भी अर्जित कर लिया त्पश्चात् कई वर्षों तक महादेव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और भगवान शिव शंकर से तीन अभेद्य बाण प्राप्त किये जिनसे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे और 'तीन बाणधारी' का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया।

जन्मकथा

घटोत्कच और मोरवी विवाहोपरांत अपनी राजधानी हिडिम्ब वन में रहने लगे | तदनन्तर समयानुसार मोरवी के गर्भ से एक महातेजस्वी और बालसूर्य के सामान कांतिमान बालक का जन्म हुआ जो जन्म लेते ही युवावस्था को प्राप्त कर गया |

तब उस युवक ने हाथ जोड़कर अपने माता पिता से कहा -"मैं आप दोनों को प्रणाम करता हूँ | बालक के आदिगुरु उसके माता पिता ही होते है, अतः आप दोनों के दिए गए नाम को ही मैं ग्रहण करना चाहता हूँ |"

तब घटकाच ने अपने पुत्र को स्नेह से गले लगाकर कहा -" बेटा तुम्हारे बाल बर्बराकार (घुंघराले) हैं इसलिए तुम्हारा नाम बर्बरीक होगा |"

इसके बाद घटोत्कच बर्बरीक को लेकर श्री कृष्ण के पास द्वारिका के लिए गए | 

साधना और शिक्षा और शक्ति अर्जन

द्वारिका में श्री कृष्ण के पास पहुंचने के बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पुछा - "बेटा मोर्वेय तुम्हे जो जो पूछने की इच्छा हो, सब पूछ लो |"

बर्बरीक ने कहा -"हे आर्यदेव प्रभु मैं मन, बुद्धि और समाधी के द्वारा आपको प्रणाम करके यह पूछता हूँ के संसार में जन्मे जीव का कल्याण किस साधन से होता है ? कोई धर्म को कल्याण कारी कहता है, कोई ऐश्वर्यदान को, कोई तपस्या को, कोई मोक्ष को श्रेय कहते हैं | हे पुरुषोत्तम इस प्रकार सभी श्रेय में से एक श्रेय निश्चित करके बतलाइये जो मेरे और मेरे कुल के लिए कल्याणकारी हो |"

तब श्रीभगवान बोले -"हर वर्ण के लिए अलग अलग उत्तम श्रेय बताया गया है | ब्राह्मण के लिए कल्याणकारी है - तप, इन्द्रिय संयम और स्वाध्याय | क्षत्रियों के लिए बल ही सर्वप्रथम साध्य है और दुष्टों के दमन और साधुओं की रक्षा भी श्रेयष्कर है | वैश्यों के लिए पशुपालन और कृषिविज्ञान ही श्रेयस्कर है | तुम क्षत्रिय कुल में जन्मे हो तो अपना कर्त्वय भी सुनो | पहले तुम ऐसे बल की प्राप्ति के लिए साधना करो जिसकी कोई तुलना न हो | फिर उस बल का प्रयोग परोपकार और और निर्बल का साथी बनकर सदैव धर्म का साथ देने के लिए करो |"

इसके बाद बर्बरीक के पूछने पर श्री कृष्ण ने बताया के तुम महिसागर क्षेत्र में गुप्त क्षेत्र नाम की एक जगह है जहाँ पर नौ देवियां निवास करती है, वहां जाकर देवियों की आराधना करो और शक्तियां अर्जित करो |

इसके बाद वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण को प्रणाम किया और श्री कृष्ण ने उनके सरल ह्रदय को देखकर वीर बर्बरीक को सुहृदय नाम दिया | 

तदनन्तर बुद्धिमान सुहृदय ने मन, वचन और क्रम से देवियों की आराधना की और उनकी सच्ची निष्ठा और तप से प्रभावित होकर देवी जगदम्बा ने स्वयं प्रकट होकर केस शक्तियां और तीन बाण प्रदान किये | और उन्हें निर्देश दिया के कुछ समय तक इसी जगह निवास करे और विजय नामक उनके भक्त की रक्षा करे ताकि वो अपनी साधना पूर्ण कर सके | विजय के साधना शुरू करने के बाद सुहृदय ने उसकी रक्षा करते हुए रेपलेंद्र, द्रुहद्रुहा जैसे कई राक्षस और राक्षीसों का वध किया | उसी दौरान वीर सुहृदय ने पलासी नाम के राक्षस को उसकी नौ करोड़ दैत्य सेना को भी मार डाला | दैत्य के मारे जाने के बाद नाग देव वासुकि अन्य नागों सहित वीर सुहृदय की प्रशंसा गाने लगे और वर मांगने को कहा | तब सुहृदय ने बड़े ही आदर से कहा के अगर आप वर देना ही चाहते हैं तो इतना वर दें के विजय की साधना बिना किसी विघ्न के पूरी हो जाये | तब सभी न प्रशन्न होकर कहा के ऐसा ही होगा | नाग लोक से लौटते समय बहुत सी नाग कन्याओं के विवाह के प्रस्ताव को यह कह कर अस्वीकार कर दिया के मैंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने का व्रत लिया है |

विजय नाम के ब्राह्मण की साधना सम्पूर्ण होने के उपरांत देवता और देवियों ने प्रश्न हो कर वीर बर्बरीक को भस्म स्वरूप और भी शक्तियां प्रदान की और उन्हें चण्डिल नाम भी दिया | और फिर विजय और बर्बरीक को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए |

बर्बरीक का वध और पुनर्जन्म

इसी दौरान पांडवों के बनवास के तेरह साल भी बीत चुके थे और महाभारत के युद्ध की तयारी शुरू हो चुकी थी | तब बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने की इच्छा अपनी माता को कही | मोरवी ने वीर बर्बरीक को आशीर्वाद दिया और ये कह कर आज्ञा दी की तुम युद्ध में निर्बल पक्ष की सहायता करोगे | जब वीर बर्बरीक युद्ध में भाग लेने के लिए चल दिए तब श्री कृष्ण ने यह जान कर की यदि बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया था पांडवों की हार निश्चित हो जाएगी उसका वीर बर्बरीक का शिरोच्छेदन कर दिया |

यह समाचार सुन कर पांडव शोकाकुल होकर उसी स्थान पर आ गए | तब देवी रण चंडिका ने प्रकट होकर वीर बर्बरीक के पूर्वजन्म और ब्रह्मा जी के श्राप इस प्रकार वर्णन किया |

देवी चंडिका ने कहा-"द्वापर युग शुरू होने से पूर्व पृथ्वी सभी देवतों के सामने प्रकट हुयी और मूर जैसी दैत्यों और राक्षसों से व्यथित हो कर उनके द्वारा किये गए अत्याचारों और दुराचारों को ख़त्म करने के लिए याचना की | तब ब्रह्मा जी ने कहा के इसके लिए हमें विष्णु जी के पास चल कर उनसे सहायता मांगनी चाहिए और पृथ्वी के कष्टों के निवारण के लिए उनसे प्रार्थना करनी चाहिए |

उसी सभा में एक यक्ष जिसका नाम सुर्यवर्चा था उसने अपनी ओजस्वी वाणी में कहा के इस बात के लिए विष्णु जी को कष्ट देना उचित नहीं अगर आप सब कहें तो मैं अकेले ही समस्त राक्षसों को संघार कर दूंगा | इस पर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उस यक्ष को श्राप दे दिया के तुम पृथ्वी लोक पर राक्षस योनि में जन्म लोगे |

इतना सुन कर यक्षराज का अभिमान चूर चूर हो गया और ब्रह्मा जी वंदना करते हुए बोला के अज्ञान वश निकले मेरे इन शब्दों के लिए मैं क्षमा याचना करता हूँ, मैं आपका शरणागत हूँ आप मेरी रक्षा करें | तब ब्रह्मा जी ने कहा के मैं दिया हुआ श्राप वापिस नहीं ले सकता इसके निवारण कर सकता हूँ | भगवान् विष्णु द्वापर युग में श्री कृष्ण रूप में जन्म लेंगे और उन्ही के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा | उसी समय भगवान् विष्णु ने भी वहां उपस्थित हो कर कहा के हे वीर तुम बहुत बड़े योद्धा होओगे और देव स्वरुप पूजे जाओगे | इसके बाद यक्षराज उसी सभा से अंतर्ध्यान हो गए और उन्ही यक्षराज सुर्यवर्चा ने भीम पौत्र बर्बरीक के र्रोप में जन्म लिया है जिसका उद्धार श्री कृष्ण के हाथों ही होना था | इसलिए आप लोगों को इसका शोक नहीं करना चाहिए और न ही श्री कृष्ण को इसका कोई दोष लगेगा |

इसके बाद देवी चंडिका ने उस शीस पर अमृत छिड़क कर उसको अजर अमर कर दिया | तब उस शीस ने सबको प्रणाम करके युद्ध देखने की इच्छा जताई और तब श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया के -" हे वत्स जब तक ये पृथ्वी रहेगी तब तक तुम पूजनीय रहोगे | और तुम इस पर्वत की चोटी से युद्ध देखोगे |"

इसके बाद देवी आकाश में अंतर्ध्यान हो गयी और बर्बरीक के धड़ का विधि अनुसार संस्कार किया गया |

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और भीम को अभिमान हो गया के उसी ने कौरवों को मारा है और उसी के पराक्रम से महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुयी है तब अर्जुन ने कहा के क्यों न बर्बरीक से यह पुछा जाये क्यूंकि उसी ने पूरा युद्ध देखा है | तब वीर बरबरीक के शीश ने भीम के अभिमान का मर्दन करते हुए कहा के मैंने पूरे युद्ध में एक ही पुरुष को युद्ध करते हुए देखा है वो पुरुष स्वयं भगवान् पुरुषोत्तम श्री कृष्ण है उन्ही की नीतियों और सुदर्शन चक्र ने कौरवों का सेना सहित विनाश किया है | इतना सुन कर आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी और भीम ने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की | तब श्री कृष्ण भीम सहित वीर बर्बरीक के शीश के निकट आये और कहा के हे वीर बर्बरीक तुम कलिकाल में सर्वत्र पूजित होकर अपने भक्तों का कल्याण करोगे | तुम्हे इस स्थान का त्याग नहीं करना चाहिए और हमसे इस युद्ध में जो भी पाप हुए हैं उन्हें क्षमा करना |

इसके बाद वीर बर्बरीक का शीश अपने अभीष्ट स्थान के लिए प्रस्थान कर गया |

इति श्री

आज ये हम सब लोग देख रहे है की वीर बर्बरीक को श्री खाटू श्याम बाबा के रूप में पूजा जाता है | उनके भक्त दूर दूर से उनके दर्शन करने के लिए आते हैं और दर्शन पाकर सुखी हो जाते हैं |

हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा |

श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम की जय |

 

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