बालि और सुग्रीव
परिचय
बालि और सुग्रीव दोनों भाई थे और रामायण के महत्वपूर्ण पात्र भी है। दोनों के जन्म की कथा बहुत ही अलग है क्यूंकि ये इन दोनों का जन्म ऋक्षराज से हुआ था। ऋक्षराज एक महाबली वानर था जो बाद में स्त्री बना और इंद्र तथा सूर्य देव के साथ से उसने बालि और सुग्रीव जो जन्म दिया था। बाद में इनका भरण पोषण गौतम ऋषि और माता अहिल्या ने किया था।
जन्म
बालि और सुग्रीव की माता का नाम ऋक्षराज था। ऋक्षराज एक महाबालि वानर था जो अपने बल के मद में चूर रहता था। एक बार वो सरोवर में स्नान करने गया। ऐसी मान्यता थी की वो सरोवर ब्रह्मा जी के स्वेद अर्थात पसीने से बना था और उस पर ये श्राप थे के अगर उसमे स्त्री स्नान करेगी तो वो पुरुष हो जाएगी और पुरुष स्नान करेगा तो वो स्त्री रूप में परिवर्तित हो जायेगा। अपनी शक्ति के नशे में चूर ऋक्षराज इस श्राप की परवाह न करते हुए सरोवर में स्नान करके जब बहार निकला तो एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किये हुए था। रास्ते में उसे देवराज इंद्र मिले और उस पर मोहित होकर कामातुर हो गए और फिर दोनों के मिलन से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसके बहुत सुन्दर केश (बाल) थे तो उसका नाम बालि रखा और इसी प्रकार एक दिन सूर्यदेव के साथ मिलन से एक और पुत्र प्राप्त हुआ जिसकी गर्दन (ग्रीवा) बहुत ही सुन्दर थी तो उसका नाम सुग्रीव रखा। दोनों के भरण पोषण के लिए ऋषि गौतम और माता अहिल्या को सौंप दिया।
विवाह
बालि का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ सम्पन्न हुआ था। एक कथा के अनुसार समुद्र मन्थन के दौरान चौदह मणियों में अप्सराएँ भी थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। वालि तारा के दाहिनी तरफ़ तथा सुषेण उसके बायीं तरफ़ खड़े हो गये। तब विष्णु ने फ़ैसला सुनाया कि विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ़ उसका होने वाला पति तथा बायीं तरफ़ कन्यादान करने वाला पिता होता है। अतः बालि तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किये गये। सुग्रीव की पत्नी का नाम रूम था।
बालि और सुग्रीव में शत्रुता
बालि और सुग्रीव दोनों ही अति बलशाली थे। बालि को अपने पिता से एक स्वर्ण हार मिला हुआ था जो ब्रह्मा जी द्वारा अभिमंत्रित था। जो भी बालि के सन्मुख युद्ध के लिए आता था तो उसका आधा बल बालि को प्राप्त हो जाता था। बालि इतना अधिक बलशाली था के रावण को अपनी पूछ में बांधकर और बगल में दबाकर पूरे संसार का चक्कर लगाया था जिससे उसका डर लोगों से निकल सके और रावण को लज्जित भी कर सके। परन्तु दोनों भाइयों के बीच शत्रुता ने जन्म लिया जिसका कारण एक राक्षस था। वालि के बारे में यह कहा जाता है कि यदि कोई उसे द्वंद्व के लिए ललकारे तो वह तुरन्त तैयार हो जाता था। दुंदुभि के बड़ा भाई मायावी की वालि से किसी स्त्री को लेकर बड़ी पुरानी शत्रुता थी। मायावी एक रात किष्किन्धा आया और वालि को द्वंद्व के लिए ललकारा। स्त्रियों तथा शुभचिन्तकों के मना करने के बावजूद वालि उस असुर के पीछे भागा। साथ में सुग्रीव भी उसके साथ था। भागते-भागते मायावी ज़मीन के नीचे बनी एक कन्दरा में घुस गया। वालि भी उसके पीछे-पीछे गया। जाने से पहले उसने सुग्रीव को यह आदेश दिया कि जब तक वह मायावी का वध कर लौटकर नहीं आता, तब तक सुग्रीव उस कन्दरा के मुहाने पर खड़ा होकर पहरा दे। एक वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात कन्दरा के मुहाने से रक्त बहता हुआ बाहर आया। सुग्रीव ने असुर की चीत्कार तो सुनी परन्तु वालि की नहीं। यह समझकर कि उसका अग्रज रण में मारा गया, सुग्रीव ने उस कन्दरा के मुँह को एक शिला से बन्द कर दिया और वापस किष्किन्धा आ गया जहाँ उसने यह समाचार सबको सुनाया। मंत्रियों ने सलाह कर सुग्रीव का राज्याभिषेक कर दिया। कुछ समय पश्चात वालि प्रकट हुआ और अपने अनुज को राजा देख बहुत कुपित हुआ। सुग्रीव ने उसे समझाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु वालि ने उसकी एक न सुनी और सुग्रीव के राज्य तथा पत्नी रूमा को हड़पकर उसे देश-निकाला दे दिया। डर के कारण सुग्रीव ने ऋष्यमूक पर्वत में शरण ली जहाँ शाप के कारण वालि नहीं जा सकता था। यहीं सुग्रीव का मिलाप हनुमान के कारण राम से हुआ।
सुग्रीव-बालि द्वंद्व
जब सुग्रीव की मित्रता श्री राम के साथ हुयी तब श्री राम ने आश्वासन दिया के वो बालि का वध करेंगे तदोपरांत सुग्रीव ने बालि को द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा। परन्तु दोनों भाइयों में इतनी अधिक समानता थी की श्री राम दूर से बालि को पहचान न सके और बालि ने सुग्रीव को मार मार का खदेड़ दिया। सुग्रीव अपनी ऐसी दुर्गति श्री राम के पास पंहुचा। श्री राम ने इस समस्या का समाधान करने हेतु सुग्रीव के गले में एक माला पहना कर कहा के अब आप बालि द्वन्द युद्ध के लिए ललकारो। सुग्रीव ऐसा ही करता है, परन्तु इस बार तारा को अहसास होता है के सुग्रीव को श्री राम का साथ है और वो बालि से अनुरोध करती है के वो युद्ध न करे और सुग्रीव को युवराज घोषित करके उससे संधि कर ले। परन्तु बालि ऐसा नहीं करता और युद्ध करने के लिए चला जाता है। दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है और श्री राम इस बार बालि पर बाण चला कर उसका वध कर देते हैं।
विक्रम संवत् 2082
बिरसा मुंडा पुण्यतिथि
🔱 सोमवार, 9 जून 2025