भीष्म (देवव्रत)

  • Updated: Aug 27 2023 11:57 AM
भीष्म (देवव्रत)

भीष्म (देवव्रत)

भीष्म या भीष्म पितामह महाभारत के महान योद्धा और सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे | उनका मूल नाम देवव्रत था और महाराज शांतनु और गंगा के पुत्र थे | अपने पिता की लिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी इसी भीषण प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया |उनकी इसी पितृ भक्ति से प्रशन्न होकर उनके पिता ने इच्छा मृत्यु का वरदान दे दिया |

भीष्म का पूर्वजन्म

भीष्म पूर्वजन्म में एक वसु थे | जो महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्मे जिसकी कथा इस प्रकार है |

एक बार कुछ वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण करने गए और वहीँ पर महर्षि वशिष्ठ का भी आश्रम था | आश्रम में नंदिनी गाय बंधी हुयी थी | तभी धौ नाम के वसु की पत्नी गाय को ले जाने की जिद की उस समय महर्षि अपने आश्रम में नहीं थे | इसका लाभ उठाकर वसुओं ने गाय को चुरा लिया |

जब महर्षि वापिस आये और गाय को पाकर उन्होंने ध्यान लगा कर अपनी दिव्य दिर्ष्टि से सब देख लिया और क्रोध में कर आठों वसुओं को श्राप दे दिया के वो सभी पृथ्वी पर मनुष्य योनि में जन्म लेंगे | श्राप के बाद वसुओं ने महर्षि से क्षमा याचना कई तब महर्षि ने कहा के मेरा दिया श्राप वापिस नहीं हो सकता मगर तुम सब बहुत काम समय के लिए मनुष्य योनि में रहेंगे | मगर धौ वसु जिसने अपनी पत्नी के कहने पर ये अपराध किया है उसको दीर्घ काल तक पृथ्वी लोक में रहना होगा और अपने पूरे जीवन में स्त्री का भोग कर सकेगा जिससे उसको कभी संतान की प्राप्ति भी नहीं होगी |

उसी समय ब्रह्मा जी ने देवनदी गंगा को और इक्ष्वांकु वंश के प्रतापी राजा महाभिष जिन्होंने हजार अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञों द्वारा देवराज इंद्र को प्रशन्न करके स्वर्ग लोक में स्थान पाया था, इन दोनों को भी पृथ्वी लोक में जन्म लेने का अभिशाप दिया थातब वसुओं ने देवनदी गंगा से विनती की के वही पृथ्वी लोक में इन वसुओं को अपनी कोख से जन्म दें ताकि उन्हें किसी मनुष्य स्त्री के गर्भ से जन्म लेना पड़े | तब वही महाभिष राजा कुरु वंश के राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु के रूप में जन्मे और देवी गंगा ने उनसे इसी शर्त पर विवाह किया के वो उनके आचरण पे कभी भी प्रश्न नहीं करेंगे और ही कभी उन पर क्रोधित होंगे | महाराज शांतनु ने अपनी स्वीकृति देते हुए देवी गंगा से विवाह किया | जब देवी गंगा ने पहले पुत्र को जन्म दिया तब उन्होंने उस पुत्र को गंगा नदी में ही बहा दिया | इसी प्रकार देवनदी गंगा ने सात पुत्रो को नदी में बहा दिया | महाराज शांतनु ने कभी भी उन्हें नहीं रोका क्यूंकि उन्हें डर था के कहीं वो उन्हें छोड़ कर चली जाये |

जब शांतनु के आठवें पुत्र को भी देवी गंगा बहाने वाली थी तब महाराज से रुका गया और उन्होंने गंगा से पूछ ही लिया के वो ऐसा क्यों कर रही हैं वो कौन हैं ? क्यों अपने ही पुत्रों का वध कर रही हो ?

तब देवी गंगा ने उन्हें बताया के वो कौन है और देवताओं के कार्य सिद्धि के लिए मनुष्य योनि में आयी है और वसुओं को श्राप मुक्त करने के लिए ही उनसे विवाह किया था | वो उनके आठवें पुत्र को नहीं मारेंगी और इसी के साथ उनका पृथ्वी पर समय पूरा हो गया है |एक मात्र धौ नामक वसु ही आपके पुत्र के रूप में दीर्घ काल तक जीवित रहेगा | इसका नाम देवव्रत रखना | मगर जब तक आपका पुत्र युवा अवस्था में नहीं आता तब तक मेरे साथ ही रहेगा और समय आने पर मैं आपको सौंप दूंगी |

भीष्म की शिक्षा

गंगा के जाने के बाद महाराज शांतनु अपना राज धर्मपूर्वक चलने लगे | उनके राज में प्रजा बहुत सुखी थी और सत्य का आचरण करती थी | एक दिन शिकार करते हुए महाराज गंगा नदी के तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा के गंगा में पानी का स्तर बहुत कम हो गया है जब उन्होंने इसकी वजह जननी चाही तो रुके हुआ जल का अनुसरण करते हुए आगे चल दिए | कुछ दूर उन्होंने देखा के एक नौजवान युद्ध का प्रयास करते हुए अपने बाणों से पानी की धारा को रोक देता है |

क्यूंकि शांतनु ने अपने पुत्र को शिशु अवस्था ही देखा था इसलिए वो उस युवक पहचान नहीं सके |तब देवी गंगा प्रकट हुई और उन्होंने राजा से कहा के मेरे गर्भ से जो आपका आठवां पुत्र उत्पन्न हुआ था ये वही है | मैंने इस पालन पौषण करके इसे बड़ा कर दिया है अब आप अपने इस पुत्र को स्वीकार कीजिये | देवी गंगा ने उनकी शिक्षा के बारे में महाराज को बताया के देवव्रत महान धनुर्धर, पराक्रमी और समस्त वेदों का ज्ञाता है | जो शास्त्र असुर गुरु शुक्राचार्य और देव गुरु बृहश्पति को ज्ञात है ये उन सभी का ज्ञाता है | कभी हारने वाले भगवान परशुराम से अस्त्रविद्या की शिक्षा ली है | ये राजधर्म और अर्थ शास्त्र का महान विद्वान है |

भीष्म प्रतिज्ञा

एक बार महाराज शांतनु भ्रमण कर रहे थे तब उन्होंने एक रूपवती सुन्दर कन्या सत्यवती को देखा उसके शरीर से एक अत्यंत दुर्लभ सुगंध आती थी | महाराज को उससे विवाह करने की इच्छा हुयी और उन्होंने उसके पिता निषादराज से कहा के वो उनकी पुत्री से विवाह करना चाहते है | परन्तु निषादराज ने शर्त रखी के सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी होगा, राजा इस वचन को दे सके और वापिस राजमहल लौट कर चिन्ताग्रस्त रहने लगे |

अपने पिता को चिंताग्रस्त देखकर देवव्रत ने महाराज के मंत्री से उनकी चिंता का कारण जाना | तब महाराज के सारथि को लेकर वो निषादराज के पास गए और उनसे अपने पिता के लिए उसकी पुत्री को माँगा | तब निषादराज ने अपनी शर्तों को दोहराया  | तब देवव्रत ने उन्हें वचन दिया के सत्यवती का पुत्र की हस्तिनापुर का राजा बनेगा | फिर निषादराज ने कहा के आगे चलकर देवव्रत की जो संतान होगी वो इस वचन को निभाएगी तब क्या होगा | तब देवव्रत ने निषादराज को वचन दिया के वो आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे और निःसंतान रहेंगे और आजीवन हस्तिनापुर के राजा की सेवा करेंगे | उनकी इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया | तब निषादराज ने चिंतामुक्त होकर सत्यवती को उनके साथ उनके पिता के लिए भेज दिया |

जब देवव्रत के पिता को सारा वृतांत सुनाया गया तब उन्होंने देवव्रत की पितृ भक्ति से खुश होकर इच्छा मृत्यु का वरदान दिया |

भीष्म को मिला विवाह का प्रस्ताव और अभिशाप और परशुराम से युद्ध

शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य | विचित्रवीर्य अभी किशोर अवस्था में ही थे के महाराज शांतनु की मृत्यु हो गयी | चित्रांगद को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया और चित्रांगद का अपने ही नाम वाले गन्धर्व के साथ युद्ध हुआ जिसमे कुरु नरेश चित्रांगद का वध हो गया | उसके बाद विचित्रवीर्य का राजयभिषेक करके उन्हें राजा बनाया गया | विचित्रवीर्य के लिए भीष्म ने काशीनरेश की 3 कन्याओं का बलपूर्वक हरण किया था | जिनके नाम थे अम्बा, अम्बालिका और अम्बिका | अम्बा शाल्व राजकुमार से प्रेम करती थी तो सत्यवती ने उन्हें शाल्व प्रदेश की लिए भिजवा दिया, मगर शाल्व राजकुमार ने अम्बा को स्वीकार नहीं किया |

जिससे अम्बा अपमानित होना पड़ा तब अम्बा ने लौट कर भीष्म को कहा के अब उन्हें उससे विवाह करना होगा | परन्तु अपनी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म ने विवाह को प्रस्ताव को अस्वीकार किया | अम्बा ने क्रोध में आकर भीष्म को श्राप दिया के वो ही भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी |

अम्बा अपने बलिदान का बदला लेने के लिए भगवान परशुराम की शरण में गयी और उन्हें सारा वृतांत सुनाया | भगवान परशुराम ने अम्बा की सहायता करने के लिए भीष्म  के सामने गए और उन्हें कहा के या तो वो अम्बा के साथ विवाह करें या फिर उनके साथ युद्ध करना होगा | तब भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के लिए भगवान परशुराम के साथ भीषण युद्ध किया | महाभारत के अनुसार ऋषि मुनियों ने बीच में आकर युद्ध विराम कराया और कई कथाओं के अनुसार स्वयं महादेव के कहने पर भगवान परशुराम को रोका और युद्ध विराम कराया था |

भीष्म की मृत्यु

महाभारत के युद्ध में नौवें दिन जब भीष्म ने अर्जुन को घायल कर दिया और पांडवों की सेना में हाहाकार मचा हुआ था | तब युद्ध विराम के बाद पांडवों ने भीष्म से ही उनकी पराजय का उपाय जाना | तब अगले दिन अर्जुन ने शिखंडी को अपने साथ रखा और भीष्म ने शिखंडी को सामने देखकर अपने अस्त्र शस्त्र त्याग दिए | शिखंडी अम्बा का ही पुनर्जन्म था और वो नपुंशक था | भीष्म को ये ज्ञात था इसलिए शिखंडी के सामने उन्होंने अपने अस्त्रों को त्याग दिया | तभी श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भीष्म के शरीर को तीरों से भेद दिया और भीष्म शरशय्या पर गिर गए | महाभारत के युध्द के समाप्त होने के बाद भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए 

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