द्रौपदी

  • Updated: Aug 27 2023 11:11 AM
द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण किरदारों में से एक है।  महाभारत के अनुसार द्रौपदी पांचाल नरेश द्रुपद की बेटी थी।  वो पांच कन्याओं में से एक थी जिन्हे चिर यौवन का वरदान था। द्रौपदी को कृष्णा, यञसेनी, पांचाली और द्रुपदकन्या के नाम से भी जाना जाता है।  श्री कृष्णा द्रौपदी को सखी कह कर सम्भोदित करते थे।

द्रौपदी का पूर्वजन्म

द्रौपदी पूर्वजन्म में मुद्गल ऋषि की पत्नी थी उनका नाम इन्द्रसेना था।  उनके पति की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी तब उसने भगवन शिव की तपस्या की और शिव से वरदान स्वरुप ऐसे पति पाने की इच्छा बताई और मुझे सर्वगुण संपन्न पति चाहिए जो सत्य और धर्म का ज्ञाता और पालन करने वाला हो, वो बल में पवनपुत्र के सामान हो, जो परशुराम की तरह धनुर्धर हो, जो दिखने में सर्वाधिक सुन्दर हो और सहनशक्ति में भी सर्वोत्तम हो। इतना सुनकर भगवन शिव ने कहा के ये सब विशेषता एक ही पुरुष में नहीं होंगी इसलिए तुम्हे पांच पुरुषो का संग प्राप्त होगा।  इसलिए अगले जन्म में द्रौपदी बनकर पांडवों की पत्नी बनी।

द्रौपदी का जन्म

जब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देनी चाही। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हुआ और उन्होंने राजकुमारों से कहा, "राजकुमारों यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पांचाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष प्रस्तुत करो। यही तुम लोगों की गुरुदक्षिणा होगी।

गुरु की आज्ञा मिलने पर दुर्योधन के नेतृत्व में कौरवों ने पांचाल पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा किन्तु अन्त में कौरव परास्त हो कर भाग निकले। कौरवों को पलायन करते देख पाण्डवों ने आक्रमण आरम्भ कर दिया। भीमसेन तथा अर्जुन के पराक्रम के समक्ष पांचाल नरेश की सेना हार गई। अर्जुन ने आगे बढ़ कर द्रुपद को बन्दी बना लिया और गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष ले आए।

द्रुपद को बन्दी के रूप में देख कर द्रोणाचार्य ने कहा, "हे द्रुपद अब तुम्हारे राज्य का स्वामी मैं हो गया हूँ। मैं तो तुम्हें अपना मित्र समझ कर तुम्हारे पास आया था किन्तु तुमने मुझे अपना मित्र स्वीकार नहीं किया था। अब बताओ क्या तुम मेरी मित्रता स्वीकार करते हो?" द्रुपद ने लज्जा से सिर झुका लिया और अपनी भूल के लिए क्षमायाचना करते हुए बोले, "हे द्रोण आपको अपना मित्र न मानना मेरी भूल थी और उसके लिये अब मेरे हृदय में पश्चाताप है। मैं तथा मेरा राज्य दोनों ही अब आपके आधीन हैं, अब आपकी जो इच्छा हो करें।" द्रोणाचार्य ने कहा, "तुमने कहा था कि मित्रता समान वर्ग के लोगों में होती है। अतः मैं तुमसे बराबरी का मित्र भाव रखने के लिए तुम्हें तुम्हारा आधा राज्य लौटा रहा हूँ।" इतना कह कर द्रोणाचार्य ने गंगा नदी के दक्षिणी तट का राज्य द्रुपद को सौंप दिया और शेष को स्वयं रख लिया।

गुरु द्रोण से अपमानित होकर द्रुपद अपने मन में प्रतिशोद की भावना लिए चिंताग्रस्त हो कर घूमते हुए कल्याणी नमक ब्राह्मणो की नगरी में जा पंहुचा जहाँ उसकी भेट याज और उपयाज नामक दो ऋषियों से हुआ। राजा द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न किया और ऐसा यज्ञ करने का अनुग्रह किया जिससे वो ऐसा पुत्र प्राप्त कर सके जो गुरु द्रोण का वध कर सके। तब राजा द्रुपद के कहे अनुसार याज और उपयाज ने यज्ञ कराया और उस यज्ञ की अग्नि से एक पुत्र का जन्म हुआ जो कवच कुण्डल और धनुष बाण धारण किये था। उसके बाद उसी अग्नि से एक पुत्री भी प्रकट हुयी जो जिसके नेत्र कमल के सामान थे और देखने में बहुत ही सुन्दर थी, उसका वर्ण श्याम था इसलिए उसका नाम कृष्णा रखा गया। द्रुपद कन्या होने के कारन उसका नाम द्रौपदी भी रखा गया और द्रौपदी नाम ही प्रचलित हुआ।

द्रौपदी स्वयंवर और पांचों पांडवों से उसका विवाह 

द्रौपदी का जन्म नहीं हुआ था वो अग्नि से अपने युवती रूप में ही प्रकट हुयी थी तो उस कारण उसका कोई बचपन नहीं था। इसलिए जल्दी ही राजा द्रुपद ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की जिसमें कौरव, कर्ण सहित बहुत से वीरों ने भाग लिया। हालांकी पांडव उस समय लाक्षगृह से बच कर वन में बिना किसी को बता कर अपना जीवन जी रहे थे तब उन्हें भी स्वयंवर का समाचार मिला तो वो भी इसमें भाग लेने के लिए पांचाल राज्य आ गए थे। 

द्रौपदी के स्वयंवर की शर्त थी के जो भी नीचे पानी में देखकर ऊपर घूमती हुयी मछली की आँख का भेदन करेगा उसी को द्रौपदी वर माला पहनाएगी।  उस सभा में उपस्थित सभी राजा और राजकुमार इस लक्ष्य को भेदने में असमर्थ थे। तब अर्जुन ने आगे आकर उस लक्ष्य को भेदकर द्रौपदी और उसका दिल जीत लिया। 

स्वयंवर के बाद जब अर्जुन द्रौपदी को लेकर कुंती के पास गए तब अर्जुन ने कहा के माता देखिये हम क्या लेकर आये हैं। इतना सुनकर कुंती ने आदेश दिया के जो भी लाये हो पांचो भाई आपस में बाँट लो। वो सब जानते थे के ऐसा करना बहुत कठिन है तब ऋषि व्यास जी ने कुंती और पांडवों को द्रौपदी के पिछले जन्म में मिले वरदान का बताया। व्यास जी से सारा वृतांत सुनने के बाद द्रौपदी और पांडवों का विवाह संपन्न हुआ। 

द्रौपदी का चीरहरण

जब युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच बटवारें के स्वरुप इंद्रप्रस्थ का निर्माण हुआ और युधिष्ठिर पांडवों सहित वहां राज्य करने लगे। तब दुर्योधन ने पांडवों को द्युत क्रीड़ा अर्थात जुआं खेलने के लिए आमंत्रित किया। उस समय जुआं खेलना क्षत्रियों के लिए मनोरंजन का साधन हुआ करता था, इसलिए युधिष्ठिर ने दुर्योधन के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और पांडव और द्रौपदी सहित हस्तिनापुर चले गए। युधिष्ठिर एक - एक करके सब कुछ हारते गए। युधिष्ठिर सब कुछ हार ने के बाद उन्होंने द्रौपदी को दाँव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को भी जीत लिया।

द्रौपदी को जुएं में जितने के बाद दुर्योधन ने उसकी सभा में उपस्थित होने के लिए बुलाया। द्रौपदी के मना करने के बाद दुर्योधन ने दुःशासन को द्रौपदी को लाने के लिए भेजा।  दुःशासन ने द्रौपदी के केश पकड़ कर उसे घसीटते हुए सभा में ले जाने लगा। द्रौपदी ने दुःशासन को बहुत समझना चाहा के उसके शरीर पे एक ही वस्त्र है और मैं राजस्वला हूँ (राजस्वला वो स्त्री जो मासिक धर्म की अवस्था में हो उसे कहते है) और इस अवस्था में सभा में सबके सामने जाना उचित नहीं है। मगर दुःशासन ने द्रौपदी की एक न सुनी और उसे घसीटते हुए सभा में ले आया।

जब दुःशासन द्रौपदी का वस्त्र खिंच कर उतरने का प्रयास करने लगा तब द्रौपदी ने श्री कृष्ण का स्मरण किया और भक्तवत्सल और करुनानिधान श्री कृष्ण ने अदृश्य रहकर द्रौपदी की रक्षा की। दुःशासन के बार बार प्रयास करने के बाद भी द्रौपदी निवस्त्र न हो सकी। 

मगर एक राजकुमारी और यज्ञ की अग्नि से जन्मी और पांडवों की रानी का भरी सभा में इस प्रकार

से अपमान हुआ था जो महाभारत के युद्ध का बहुत बड़ा कारण भी बना।

द्रौपदी के पुत्र

द्रौपदी के पांच पुत्र थे। युधिष्ठिर से प्रतिविन्ध्य, भीम से सुतसोम, अर्जुन से श्रुतकर्मा, नकुल से शातनिक और सहदेव से श्रुतसेन। इन पाँचों पुत्रो की हत्या अश्व्थामा ने की थी।

द्रौपदी की मृत्यु

जब पांडव अपना राज त्याग कर द्रौपदी को संग लेकर स्वर्ग के लिए हिमालय की यात्रा कर रहे थे तब उसी मार्ग में द्रौपदी चलते चलते गिर गयी और उसकी मृत्य हो गयी।

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