गोलोकधाम

  • Updated: Jul 11 2024 11:53 AM
गोलोकधाम

जब ब्रह्मा जी और देवताओं ने गोलोकधाम के दर्शन किये

 

एक समय की बात है पृथ्वी स्वयं गऊ रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गयी और और उन्हें ये बताया के किस प्रकार वो दैत्यों, दानवों, राक्षसों और दुष्ट राजाओं के भार से पीड़ित है। ब्रह्मा जी भू देवी से सारी व्यथा सुनकर सभी देवताओं के साथ वैकुण्ठ धाम पहुंचे। तब भगवान विष्णु ब्रह्मा जी को बोले आप लोग श्री कृष्ण जो अगणित ब्रह्माण्डों के स्वामी है और अखण्डस्वरूप हैं। आप सभी उनके परम उज्जवल और अविनाशी धाम में जाएँ वही आपकी सभी कार्य सिद्ध करेंगे।

ये सब सुनकर ब्रह्मा जी ने आश्चर्य से श्री विष्णु जी से पुछा के आपके धाम से भी अलग कोई और परम धाम है ये मुझे ज्ञात नहीं है। अगर आपसे भी कोई उत्कृष्ट कोई परमेश्वर हैं और वैकुण्ठ से भी उज्जवल कोई लोक है तो आप स्वयं हमें वहां ले चलें।

ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर पूर्ण भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी तथा सभी देवताओं को गोलोक धाम का मार्ग बताया, जो ब्रह्माण्ड के शिखर पर स्थित है। वामन जी के पैर के बाएं अंगूठे से जब ब्रह्माण्ड के सिर में एक छिद्र किया गया तो वह ब्रह्म द्रव्य से भर गया। उस स्थान के लिए बने जलयान से सभी देवता वहां से निकल आए। ब्रह्माण्ड के ऊपर पहुंचकर उन सभी ने नीचे ब्रह्माण्ड को कलश के समान देखा। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक ब्रह्माण्ड भी इन्द्रायण फलों के समान उस जल में इधर-उधर लोट रहे थे। यह देखकर सभी देवता आश्चर्यचकित हो गए। वे चकित हो गए। वहां से करोड़ों मील ऊपर आठ नगर मिले, जिनकी शोभा चारों ओर की दिव्य दीवारों से बढ़ रही थी। तथा मणिजड़ित वृक्षों के समूहों ने उन नगरों की शोभा बढ़ा दी थी। वहां ऊपर देवताओं ने विरजा नदी का सुन्दर तट देखा, जहां से विरजा की लहरें टकरा रही थीं। वह तटवर्ती क्षेत्र चमकीले रेशमी वस्त्र के समान श्वेत दिखाई दे रहा था। वहां तटकी शोभा देखते और आगे बढ़ते हुए वे देवता उस उत्तम नगरमें पहुँचे, जो अनन्तकोटि सूर्योंकी ज्योतिका महान पुञ्ज जान पड़ता था। उसे देखकर देवताओंकी आँखें चौंधिया गयीं। वे उस तेजसे पराभूत हो जहाँ-के-तहाँ खड़े रह गये। तब भगवान् विष्णुकी आज्ञाके अनुसार

उस तेजको प्रणाम करके ब्रह्माजी उसका ध्यान करने लगे। उसी ज्योतिके भीतर उन्होंने एक परम शान्तिमय साकार धाम देखा। उसमें परम अद्भुत, मलनालके समान धवल-वर्ण हजार मुखवाले शेषनागका दर्शन करके सभी देवताओंने उन्हें प्रणाम किया। राजन् ! उन शेषनागकी गोदमें महान् आलोकमय लोकवन्दित गोलोकधामका दर्शन हुआ, जहाँ धामाभिमानी देवताओंके ईश्वर तथा गणनाशीलोंमें प्रधान कालका भी कोई वश नहीं चलता। वहाँ माया भी अपना प्रभाव नहीं डाल सकती। मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार, सोलह विकार तथा महतत्त्व भी वहाँ प्रवेश नहीं कर सकते हैं; फिर तीनों गुणोंके विषयमें तो कहना ही क्या है ! वहाँ कामदेवके समान मनोहर रूप लावण्य शालिनी, श्यामसुन्दरविग्रहा श्रीकृष्णपार्षदा द्वारपाल-का कार्य करती थीं। देवताओंको द्वारके भीतर जानेके लिये मना कर दिया।

 

फिर देवताओं ने कहा - हम सभी ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि लोकपाल और इंद्र आदि देवता हैं। भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हेतु यहाँ आये हैं।

तब द्वारपालिकाओं ने अंदर जाकर सब बात कही और तब एक सखी जिसका नाम शतचन्द्रनना नाम था वो आयीं और उनका आने का प्रयोजन पुछा। उसने देवताओं से पुछा के आप किस ब्रह्माण्ड के निवासी हैं पहले ये बताएं तब मैं श्री कृष्ण के पास जाउंगी। ये सब सुनकर देवताओं को आश्चर्य हुआ के क्या अन्य भी कोई ब्रह्माण्ड हैं ? इसे सुनकर सखी मुस्कुराकर बोली के यहाँ तो विरजा नदी में करोड़ों ब्रह्माण्ड और उनमें आपकी तरह अलग अलग देवता निवास करते हैं, आपको क्या अपने निवास का नाम भी नहीं पता। आप कभी यहाँ आये नहीं हैं?

इस प्रकार उपहास उड़ता देख श्री विष्णु जी ने कहा - जिस ब्रह्माण्ड में भगवान पृश्रिगर्भ सनातन अवतार हुआ है तथा त्रिविक्रम (विराट-रूपधारी वामन) के नख से जिस ब्रह्माण्ड में विविर बन गया है, वहीं हम निवास करते हैं। भगवान विष्णु की यह बात सुनकर सखी भीतर गयी और और शीघ्र ही आकर सभी को पधारने की आज्ञा देकर चली गयी। तब देवताओं ने परमसुन्दर गोलोकधाम का दर्शन किया। वहां गोवर्धन गिरिराज शोभायमान थे।  गिरिराज पर्वत वसंत उत्सव मानाने वाली गोपियों और गऊओं के समूह से घिरा हुआ था, कल्पवृक्ष कल्पलताओंके समुदायसे सुशोभित था और रास- मण्डल उसे मण्डित (अलंकृत) कर रहा था। वहाँ श्यामवर्णवाली उत्तम यमुना नदी स्वच्छन्द गतिसे बह रही है। तटपर बने हुए करोड़ों प्रासाद उसकी शोभा बढ़ाते हैं तथा उस नदीमें उतरनेके लिये वैदूर्यमणिकी सुन्दर सीढ़ियाँ बनी है वहाँ दिव्य वृक्षों और लताओंसे भरा हुआ 'वृन्दावन' अत्यन्त शोभा पा रहा है; भाँति-भाँतिके विचित्र पक्षियों, भ्रमरों तथा वंशीवटके कारण वहाँकी सुषमा और बढ़ रही है। वहाँ सहस्रदल कमलोंके सुगन्धित परागको चारों ओर पुनः-पुनः बिखेरती हुई शीतल वायु मन्द गतिसे बह रही है। वृन्दावनके मध्यभागमें बत्तीस वनोंसे युक्त एक 'निज निकुञ्ज' है। चहारदीवारियाँ और खाइयाँ उसे सुशोभित कर रही हैं। उसके आँगनका भाग लाल वर्णवाले अक्षयवटोंसे अलंकृत है। पद्मरागादि न सात प्रकारकी मणियोंसे बनी दीवारें तथा आँगनके फर्श बड़ी शोभा पाते हैं। करोड़ों चन्द्रमाओं के  मण्डलकी छवि धारण करनेवाले चंदोवे उसे अलंकृत त्र कर रहे हैं तथा उनमें चमकीले गोले लटक रहे हैं। फहराती हुई दिव्य पताकाएँ एवं खिले हुए फूल मन्दिरों एवं मार्गोंकी शोभा बढ़ाते हैं। वहाँ भ्रमरोंके गुञ्जारव संगीतकी सृष्टि करते हैं। तथा मत्त मयूरों और कोकिलोंके कलरव सदा श्रवणगोचर होते हैं। वहाँ बालसूर्यके सदृश कान्तिमान् अरुण-पीत कुण्डल धारण करनेवाली ललनाएँ शत-शत चन्द्रमाओंके समान गौरवर्णसे उद्भासित होती हैं। स्वच्छन्द गतिसे चलनेवाली वे सुन्दरियाँ मणिरत्नमय भित्तियोंमें अपना मनोहर मुख देखती हुई वहाँके रत्नजटित आँगनों में भागती फिरती हैं। उनके गलेमें हार और बाँहोंमें केयूर शोभा देते हैं। नूपूरों तथा करधनीकी मधुर झनकार वहाँ गूँजती रहती है। वे गोपाङ्गनाएँ मस्तकपर चूड़ामणि धारण किये रहती हैं। वहाँ द्वार-द्वारपर कोटि-कोटि मनोहर गौओंके दर्शन होते हैं। वे गौएँ दिव्य आभूषणोंसे विभूषित हैं और श्वेत पर्वतके समान प्रतीत होती हैं सब-की-सब दूध देनेवाली तथा नयी अवस्थाकी हैं। सुशीला, सुरुचा तथा सद्गुणवती हैं। सभी सवत्सा और पीली पूँछकी हैं। ऐसी भव्य रूपवाली गौएँ वहाँ सब ओर विचर रही हैं। उनके घंटों तथा मञ्जीरोंसे मधुर ध्वनि होती रहती है। किङ्किणीजालोंसे विभूषित उन गौओंके सींगोंमें सोना मढ़ा गया है। वे सुवर्ण-तुल्य हार एवं मालाएँ धारण करती हैं। उनके अङ्गोंसे प्रभा छिटकती रहती है। सभी गौएँ भिन्न-भिन्न रंगवाली हैं- कोई उजली, कोई काली, कोई पीली, कोई लाल, कोई हरी, कोई ताँबेके रंगकी और कोई चितकबरे रंगकी हैं। किन्हीं-किन्हींका वर्ण धुँए-जैसा है। बहुत-सी कोयलके समान रंगवाली हैं। दूध देनेमें समुद्रकी तुलना करनेवाली उन गायोंके शरीरपर तरुणियोंके करचिह्न शोभित हैं, अर्थात् युवतियोंके हाथोंके रंगीन छापे दिये गये हैं। हिरनके समान छलाँग भरनेवाले बछड़ोंसे उनकी अधिक शोभा बढ़ गयी है। गायोंके झुंडमें विशाल शरीरवाले साँड़ भी इधर-उधर घूम रहे हैं। उनकी लंबी गर्दन और बड़े-बड़े सींग हैं। उन साँड़ोंको साक्षात् धर्मधुरंधर कहा जाता है।

गौओंकी रक्षा करनेवाले चरवाहे भी अनेक हैं। उनमेंसे कुछ तो हाथमें बेंतकी छड़ी लिये हुए हैं। और दूसरोंके हाथों में सुन्दर बाँसुरी शोभा पाती है। उन सबके शरीरका रंग श्यामल है। वे भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रकी लीलाएँ ऐसे मधुर स्वरोंमें गाते हैं कि उसे सुनकर कामदेव भी मोहित हो जाता है॥ इस 'दिव्य निज निकुञ्ज' को सम्पूर्ण देवताओंने प्रणाम किया और भीतर चले गये। वहाँ उन्हें हजार दलवाला एक बहुत बड़ा कमल दिखायी पड़ा। वह ऐसा सुशोभित था, मानो प्रकाशका पुञ्ज हो। उसके ऊपर एक सोलह दलका कमल है तथा उसके ऊपर भी एक आठ दलवाला कमल है। ऊपर एक चमकीला ऊंचा सिंहासन चमक रहा है। तीन सीढ़ियों से सुसज्जित यह दिव्य सिंहासन कौस्तुभ रत्नों से जड़ा हुआ है, जो इसे अद्वितीय रूप से भव्य बनाता है। भगवान कृष्ण इस पर श्री राधा के साथ बैठे हैं। सभी देवता इस दृश्य से धन्य हो जाते हैं। दिव्य युगल के साथ मोहिनी जैसी आठ दिव्य सखियाँ हैं और श्रीदामा जैसे आठ गोपाल उनकी सेवा करते हैं।

उनके ऊपर हंसके समान सफेद रंगवाले पंखे झले जा रहे हैं और हीरोंसे बनी मूँठवाले चॅवर डुलाये जा रहे हैं। भगवान्‌की सेवामें करोंड़ो ऐसे छत्र प्रस्तुत हैं, जो कोटि चन्द्रमाओंकी प्रभासे तुलित हो सकते हैं। भगवान् श्रीकृष्णके वामभागमें विराजित श्रीराधिकाजीसे उनकी बायीं भुजा सुशोभित है। भगवान्‌ने स्वेच्छापूर्वक अपने दाहिने पैरको टेढ़ा कर रखा है। वे हाथमें बाँसुरी धारण किये हुए हैं। उन्होंने मनोहर मुसकानसे भरे मुखमण्डल और श्रुकुटि-विलाससे अनेक कामदेवोंको मोहित कर रखा है। उन श्रीहरिकी मेघके समान श्यामल कान्ति है। कमल-दलकी भाँति बड़ी विशाल उनकी आँखें हैं। घुटनोंतक लंबी बड़ी भुजाओंवाले वे प्रभु अत्यन्त पीले वस्त्र पहने हुए हैं। भगवान् गलेमें सुन्दर वनमाला धारण किये हुए हैं, जिसपर वृन्दावनमें विचरण करनेवाले मतवाले भ्रमरोंकी गुंजार हो रही है। पैरोंमें घुँघरू और हाथोंमें कङ्कणकी छटा छिटका रहे हैं। अति सुन्दर मुसकान मनको मोहित कर रही है। श्रीवत्सका चिह्न, बहुमूल्य रत्नोंसे बने हुए किरीट, कुण्डल, बाजूबंद और हार यथास्थान भगवान्- की शोभा बढ़ा रहे हैं। भगवान् श्रीकृष्णके ऐसे दिव्य दर्शन प्राप्तकर सम्पूर्ण देवता आनन्दके समुद्रमें गोता खाने लगे। अत्यन्त हर्षके कारण उनकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा बह चली। तब सम्पूर्ण देवताओंने हाथ जोड़कर विनीत-भावसे उन परम पुरुष श्रीकृष्ण-चन्द्रको प्रणाम किया॥

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विक्रम संवत् 2082

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🔆 मंगलवार, 22 अप्रैल 2025