पांडव

  • Updated: Aug 27 2023 11:15 AM
पांडव

पांडव महाभारत के महान योद्धा और नायक थे | पांडवों के आध्यत्मिक पिता कुरुवंश के प्रतापी राजा पाण्डु थे | पाण्डु की दो पत्नियां थी रानी कुंती और रानी माद्री | कुंती के पुत्र युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन और माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव थे | कुरु वंशियों को ही कौरव कहा जाता है मगर पाण्डु के पांच पुत्रों ने अपनी पहचान पांडव के नाम से ही बनायीं |

पांडवों का जन्म

एक बार महाराज पाण्डु अपनी दोनों रानियों के साथ वन में आखेट के लिए गए हुए थे | तब एक मृग का पीछा करते हुए पाण्डु ने एक बाण चलाया जो एक सहवासरत ऋषि युगल को लगा | ऋषि ने क्रोध में आकर पाण्डु को श्राप दिया के जब भी आप सहवास करोगे तब उसी अवस्था में तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी |

ऋषि के श्राप से दुखी महाराज पाण्डु ने सारी बात रानी कुंती और रानी माद्री को बताई  और निश्चय किया के वो सब कुछ त्याग कर वन में ही निवास करेंगे | ये सब सुन कर दोनों रानियों को भारी दुःख हुआ और उन्होंने भी निश्चय किया के वो भी सब त्याग कर महाराज पाण्डु के साथ वन में रहेंगी |

इसी तरह पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों के साथ वन में रह रहे थे तब उन्होंने ऋषियों को ब्रह्मलोक की और जाते हुए देखा और उन्हें साथ ले जाने के लिए आग्रह किया | मगर ऋषियों ने कहा के आप एक निःसंतान पुरुष हो इसलिए आप ब्रह्मलोक को नहीं सकते | यह सुनकर राजा को भारी दुःख हुआ और उन्हें अपने निःसंतान होने के कारन पर पछतावा भी हुआ |

जब उन्होंने अपना दुःख रानी कुंती को बताया तब कुंती ने उन्हें कहा की वो पाण्डु की सहायता कर सकती है | तब कुंती ने दुर्वासा ऋषि के दिए हुए वरदान के बारे में बताया जिससे वो जिस भी देवता का आह्वान करेगी वो प्रकट हो जायेंगे और उन्हें कुंती को वरदान देना होगा |

तत्पश्चात पाण्डु के कहने पर कुंती ने धर्मराज का आह्वान किया | धर्मराज ने उन्हें एक पुत्र दिया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा | फिर कुंती ने वायुदेव का आह्वान किया उससे उन्हें एक और पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम भीम रखा गया | फिर कुंती ने इन्देर्देव का आह्वान किया जिससे उन्हें एक और पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम अर्जुन रखा गया |

फिर कुंती ने ही माद्री को भी उसी मन्त्र के दीक्षा दी और माद्री ने अश्वनी कुमारों का आह्वान किया जिससे उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए जिनका नाम नकुल और सहदेव रखा |

इसी तरह पांचों पांडवों का जन्म हुआ |

पांडवों का पूर्वजन्म

पूर्वकाल में एक दिन सभी देवता गण गंगा जी में स्नान करके वहीँ तट पर बैठ गए | तब उन्होंने गंगा जी में एक कमल बहता हुआ देखा जिसे देखकर वो सभी चकित हुए और देवराज इंद्र इसका पता लगाने के लिए उस और चल दिया जहाँ से कमल बहता हुआ रहा था | इंद्र उस जगह पहुंचे जो गंगा जी के मूल स्थान था | वहां उन्होंने एक सूंदर स्त्री को रोते हुए देखा उसके आश्रु ही गंगा में गिर कर कमल बन रहे थे | इंद्र ने उस स्त्री से उसका परिचय पुछा तब उसने कहा की आप अगर ये जानना चाहते हैं कि मैं कौन हूँ और क्यों रो रही हूँ तो आप मेरे पीछे पीछे आइये | तब देवराज इंद्र उसके पीछे चलकर हिमालय के शिखर पर पहुचें तो उन्होंने देखा के परम सुन्दर तरुण पुरुष  सिद्धासन में बैठें है | उन्होंने इंद्र की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जिस पर इंद्र को क्रोध गया और कुपित होकर बोले - "महानुभाव ये सारा जगत मेरे अधीन है मैं इस जगत का स्वामी हूँ और इस जगत का ईश्वर हूँ |"

इंद्र को क्रोध में देख कर वे देवपुरुष हंसने लगे और इंद्र की तरफ नजर उठा कर देखा | उनकी दृष्टि पड़ते ही इंद्र स्तब्ध रह गए और टूटे काठ की भांति निष्चेष्ट रह गए | तब उन देव पुरुष ने उस रोती हुयी स्त्री से बोला के इंद्र को मेरे समीप लाओ ताकि इसके भीतर अंहकार रहे |

ज्यों ही उस देवी ने इंद्र को छुआ, इंद्र के अंग शिथिल हो गए और धरती पर गिर पड़े | तब उन देवपुरुष जो की साक्षात् भगवन शिव अपने रूद्र रूप में थे उन्होंने इंद्र से कहा और एक गुफा की और भेजते हुए कहा के इसमें प्रवेश करो यहाँ तुम्हारे जैसे और तुमसे पहले के और भी इंद्र है |

जब इंद्र ने गुफा के अंदर प्रवेश के लिए उसका द्वार हटाया तब देखा के उस जैसे ही चार इंद्र उस गुफा में हैं | उनकी हालत देख कर इंद्र सोचने लगा के कहीं उसकी भी ऐसी दुर्दशा तो होगी | इतना सोच कर इंद्र महादेव के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना की और कहने लगा के आप ही इस सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले आदिपुरुष हैं |

तब महादेव ने कहा के तुम पाँचों ने पहले भी मेरा अपमान किया है इसलिए अब तुम्हे इसी गुफा में रहना होगा और तुम सब मनुष्य योनि में जन्म लेकर बहुत से दुष्टों को मारकर और दोबारा पुण्य कर्म अर्जित करके इंद्र लोक में पाओगे

तब पहले के चारों इंद्र बोले के भगवान् हम आपकी आज्ञा से मनुष्य योनि में जन्म लेंगे और अपने ही मोक्ष का साधन बनेंगे | परन्तु हमे वहां धर्म, वायु, इंद्र और दोनों अश्वनी कुमार ही माता के गर्भ में स्थापित करें | फिर हम अपने दिव्यास्त्रों द्वारा मानव वीरों से युद्ध करके पुनः इंद्रलोक में पाएं |

तब पांचवे इंद्र ने कहा के मैं भी इनके समान मनुष्य योनि में पाने द्वारा ही जन्म लूंगा जो चरों के साथ पांचवा होगा |

तब महादेव ने उन सबको आशीर्वाद दिया और कहा के ऐसा ही हो | और वो स्त्री जो इंद्र को लेकर आयी थी वो इंद्रलोक की लक्ष्मी थी और उन्ही पांचो की पत्नी भी सुनिश्चित कर दी गयी | उसी का अंश द्रौपदी में था |

उन पाँचों इंद्र के नाम थे

. विश्वभुक

. भूतधामा

. प्रतापी शिबि

. शांति

. तेजश्वी

द्रौपदी से अलग पांडवों और भी पत्निया थी |

यधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी | उनका एक पुत्र धौधेय था |

भीम की दो पत्नियां हिडिंबा और बलन्धरा थी | भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच और भीम और बलन्धरा का पुत्र सर्वंग था |

अर्जुन की तीन पत्नियां सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा थी | जिनके पुत्र परस्पर अभिमन्यु, इरावत और वभ्रुवाहन हुए |

नकुल की पत्नी करेणुमती थी और उनका पुत्र निरमित्र था |

सहदेव की पत्नी विजया थी और उनका पुत्र सुहोत्र था

पांडवों की मृत्यु

महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर सम्राट बनकर अपना राज पाठ कर रहे थे | कुछ समय बाद श्री कृष्ण अपना शरीर त्याग कर अपने लोक को प्रस्थान कर चुके थे | इसके बाद पांडवों का भी मन राज काज से भर गया और उन्होंने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित का राजतिलक किया और सारा राज सौंप कर मेरु पर्वत की यात्रा पर निकल गए | उनके पौराणिक मान्यतओं के अनुसार मेरु पर्वत से स्वर्ग का मार्ग निकलता है | मेरु पर्वत हिमालय पर्वत शृंखला में ही है |

यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी फिर सहदेव, नकुल अर्जुन और भीम एक एक करके अपनी मृत्यु को प्राप्त हुए | इस यात्रा में एक कुत्ता भी पांडवों के साथ था | अंत में युधिष्ठिर और कुत्ता ही स्वर्ग के द्वार तक पहुंच सके |

जब युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो उन्होने सबसे पहले अपने भाइयों और द्रौपदी के बारे मे पुंछा तो उन्हे बताया गया कि वो अपने नियति को प्राप्त कर चुके हैं | युधिष्ठिर ने उन्हे देखने की इच्छा प्रकट की। उन्हे उनके भाइयों के पास ले जाया गया। जहां बहुत ही अधिक अंधकार था, वहाँ नर्क जैसे वातावरण का अहसास हुआ था। उनसे मिलके बाद युधिष्ठिर से बोला गया कि वो वापस स्वर्ग चले वही उनका नियत स्थान है।

इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि मेरे भाई बंधु जहां है मैं उनके साथ ही रहूँगा। और पुनः वापस जाने को माना कर दिया। इसके बाद वहाँ प्रकाश हो गया और सभी देवी देवता आए और उन्होने बताया कि अश्वस्थामा की गलत मृत्यु का समाचार बताकर उन्होने पाप किया इसी लिए उनके कुछ समय के लिए नर्क का अनुभव करना पड़ा।

अब वो अपने भाई बंधुओं के साथ स्वर्ग मे आराम से प्रवास कर सकते है।

इसी प्रकार पांडवों का गौरवशाली अंत हुआ जो उनकी नियति भी थी और पूर्वजन्म का अधिकार भी था |

इस पूरी कहानी से हमें पता लगता है के मनुष्य के कर्मों का फल ही उसकी नियति को निर्धारित करता है और अपने कर्मों के फल को भोगे बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती 

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