वेद

  • Updated: Jan 09 2024 02:22 PM
वेद

वेद

वेद शब्द का निर्माण विद् धातु से घञ् प्रत्यय लगने से होता है |

इसका अर्थ हैज्ञान , परंतु यह ज्ञान मानव से उत्पन्न नहीं यह पूर्णरूपेण ईश्वरीय है | ईश्वर द्वारा मानव मात्र के लिए दिया हुआ ज्ञान| आधुनिक युग के विद्वान वेदों के प्रसिद्ध व्याख्याकार दयानंद सरस्वती ने वेद शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है

विदन्ति जानन्ति, विद्यन्ते भवन्ति,

अर्थात् जिनके द्वारा मनुष्य सत्य विद्या को जानते हैं/प्राप्त करते हैं, उसी का नाम वेद है|

एक और व्याख्या है के ईश्वर की प्राप्ति के लिए और अनिष्ट निवारण हेतु अलौकिक उपाय को उधघृत करते हुए उपदेश को ही वेद कहते हैं।

इनमें लौकिक अलौकिक सभी विषयों का ज्ञान भरा पड़ा है| प्रत्येक वेद के चार अंग हैं| वे हैं वेदसंहिता, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषद्| वेदों की संख्या 4 है।

ऋग्वेद - सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मन्त्रों की संख्या 10462, मंडल की संख्या 10 तथा सूक्त की संख्या 1028 है। ऐसा भी माना जाता है कि इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की कुल संख्या 432000 है। इसका मूल विषय ज्ञान है। विभिन्न देवताओं का वर्णन है तथा ईश्वर की स्तुति आदि।

यजुर्वेद - इसमें कार्य (क्रिया) यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मन्त्र हैं।

सामवेद - इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में लगे सुर को गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।

अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।

श्रुति

सृष्टि के प्रारम्भ में वेद ईश्वर के मुख से प्रकट हुए और वेदों के ज्ञान को गुरु परम्परा द्वारा शिष्यों को सुनाया जाने लगा और शिष्य सुन कर याद रखने लगे इस प्रकार सुनाए जाने पर इन्हें श्रुति कहते हैं।

 

श्लोक

गुरुओं द्वारा शिष्यों को संस्कृत में ज्ञान दिया जाता था और ये ज्ञान गति, यति और लयबद्ध होता था जिन्हें श्लोक कहते हैं। क्यूंकि ज्ञान लिपिबद्ध होने के कारण इसी परम्परा को अपनाया जाता था और लयबद्ध होने के कारन इन्हें याद रखना बहुत ही सरल भी था।

 

स्मृति

जब वेदों में निहित ज्ञान को स्मरण करके लिपिबद्ध करके संगृहीत किया जाने लगा उन्हें स्मृति कहा जाने लगा। मनु स्मृति इसका सबसे अच्छा उदहारण है जो मनु ने अपने अनुभव और गुरुओं और ऋषियों के ज्ञान को लिपिबद्ध करके लिखा था।

उपनिषद

उपनिषद शब्द का अर्थ होता है - 'समीप उपवेशन' अर्थात समीप बैठना। गुरुओं द्वारा शिष्यों को अपने पास बैठा कर वेदों का ज्ञान या ब्रह्म विद्या देना। उपनिषदों में ऋषियों या गुरु और शिष्यों के बीच गहरे संवाद हैं जिसमे आत्मा और ब्रह्म के स्वरुप और उसकी प्राप्ति के लिए साधन और उसकी क्या आवश्यकता है उस पर गहन चिन्तन उपलब्ध है। उपनिषदों में देवता-दानव, ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी, पृथ्वी, प्रकृति, चर-अचर, सभी को माध्यम बना कर रोचक और प्रेरणादायक कथाओं की रचना की गयी है। इन कथाओं की रचना वेदों की व्याख्या के उद्देश्य से की गई। जो बातें वेदों में जटिलता से कही गयी है उन्हें उपनिषदों में सरल ढंग से समझाया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अग्नि, सूर्य, इन्द्र आदि देवताओं से लेकर नदी, समुद्र, पर्वत, वृक्ष तक उपनिषद के कथापात्र है।

 

पुराण

'पुराण' शब्द का अनुवाद 'प्राचीन कथा' या 'पुरानी कहानी' है। हिंदू धर्म के सांस्कृतिक संदर्भ में, पुराण विशेष धार्मिक ग्रंथों को संदर्भित करते हैं जो शब्दों का उपयोग करके सृजन से विनाश तक के इतिहास का वर्णन करते हैं। इन ग्रंथों में वैदिक काल से प्रचलित प्राचीन राजाओं और ऋषियों के पारंपरिक वृत्तांतों और कहानियों के साथ-साथ सृष्टि से संबंधित विचारों का संग्रह शामिल है। ऐतिहासिक आख्यानों के अलावा, पुराणों में अक्सर सरल शिक्षाएँ और पाठ भी होते हैं। पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है।

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