बद्रीनाथ का मुख्य मंदिर बद्रीनारायण मन्दिर अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और मन्दिर के नाम पर ही इसके इर्द-गिर्द बसे नगर को भी बद्रीनाथ धाम ही कहा जाता है। यह भारत के कुछ सबसे व्यस्त तीर्थस्थानों में से एक है |
बद्रीनाथ मंदिर में श्री विष्णु भगवान के "बद्रीनारायण" रूप की पूजा की जाती है और ये मूर्ति शालिग्राम पत्थर द्वारा निर्मित है जिसकी ऊंचाई १ मीटर है इसे आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को भगवान विष्णु के आठ स्वयंभू मूर्ति (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है।
विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। बद्रीनाथ नगर, जहाँ ये मन्दिर स्थित है, हिन्दुओं के पवित्र चार धामों के अतिरिक्त छोटे चार धामों में भी गिना जाता है | एक अन्य संकल्पना अनुसार इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों के समूहों को मिला कर "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है जिनमे &ndash योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि-बद्री शामिल हैं |
बद्रीनाथ धाम सतयुग का प्रतीक है जहाँ नर और नारायण ने तपस्या की थी और पूरा क्षेत्र बेर के पेड़ यानी बेरियों से घिरा हुआ था | एक मान्यता और है के एक बार लक्ष्मी जी विष्णु भगवान के चरण दबा रहीं थी तभी एक तपस्वी मुनि वहां आये और विष्णु भगवान को भला बुरा कहा | इससे विष्णु भगवान क्रोधित होकर तपस्या करने लगे | तब माता लक्ष्मी ने बेरी के वृक्ष बन कर विष्णु भगवान की सेवा करी | तपस्या पूर्ण के बाद विष्णु भगवान ने लक्ष्मी जी को वरदान दिया के उनका नाम नारायण से पहले लिया जायेगा | इसलिए लक्ष्मीनारायण स्वरुप की पूजा होती है | बद्री माता लक्ष्मी और नाथ विष्णु भगवान का प्रतीक है इसलिए बद्रीनाथ (लक्ष्मी जी का नाम पहले) कहा जाता है | पूरा क्षेत्र बेरी के पेड़ो से घिरा था तो पूरे क्षेत्र को ही बद्रीनाथ धाम कहा जाता है | बद्रीनाथ में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरुप की पूजा की जाती है | जिनकी मूर्ति 1 मीटर ऊँची है और शालिग्राम (जीवाश्म) से निर्मित है |
"जो जाये बद्री, फिर कभी न जाये उदरी"
ये बद्रीनाथ धाम की महत्त्व या फिर कहें की उपयोगिता को दर्शाता है | जिसका अर्थ है के जो एक बार बद्रीनाथ धाम आ जाते हैं उन्हें फिर उदर (गर्भ/पेट) से जन्म नहीं लेना पड़ता |
अन्य कथा
प्राचीन पौराणिक कथाओं में, बद्रीनाथ का इतिहास गहराई से निहित है। पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ के आसपास का क्षेत्र कभी केदारखंड के नाम से जाना जाता था। जब गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में विभाजित हो गई, जिनमें से एक इस क्षेत्र से बहती हुई अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई। भगवान विष्णु, ध्यान के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में, अलकनंदा नदी के पास इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए।
एक लोकप्रिय किंवदंती कहती है कि भगवान विष्णु नीलकंठ पर्वत के पास एक बच्चे के रूप में अवतरित हुए और रोने लगे। बालक के रोने से माता पार्वती द्रवित होकर उसके पास आईं और उसे सांत्वना दी। बच्चे ने ध्यान करने के लिए एक स्थान का अनुरोध किया और इस प्रकार, इस पवित्र स्थान को बद्रीविशाल के नाम से जाना जाने लगा।
विष्णु पुराण की एक और महत्वपूर्ण कथा धर्म के दो पुत्रों - नारा और नारायण - के जन्म से संबंधित है। इन दिव्य प्राणियों ने धार्मिकता (धर्म) को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र में कई वर्षों तक गहन तपस्या की। अपने आश्रम की स्थापना के लिए एक आदर्श स्थान की तलाश में, उन्होंने वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों का दौरा किया। अंततः, उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे पानी का एक गर्म और ठंडा झरना मिला और इस क्षेत्र का नाम बद्री विशाल रखा गया। यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने इसी स्थान पर महाभारत लिखी थी और अपने अगले जन्म में नर और नारायण ने क्रमशः अर्जुन और कृष्ण के रूप में अवतार लिया था।
सतयुग युग के दौरान, भगवान नारायण बद्रीनाथ पहुंचे, जो उस समय बदरियां (बेर) का जंगल था। भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ यहां आनंदपूर्वक रहते थे। एक दिन भगवान विष्णु ने रोते हुए बालक का रूप धारण किया और उनकी पुकार सुनकर माता पार्वती को उन पर असीम दया आ गई। भगवान शिव की यह समझ होने के बावजूद कि यह विष्णु की लीला थी, वह बच्चे को अपने घर ले आईं। भगवान विष्णु ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए घर का दरवाजा बंद कर दिया और स्वयं प्रकट होकर इस प्रिय स्थान पर निवास करने की इच्छा व्यक्त की। तब से बद्रीनाथ अपने भक्तों को दर्शन दे रहा है, जबकि भगवान शिव की पूजा केदारनाथ में की जाती है।
पूरे इतिहास में, बद्रीनाथ एक पवित्र स्थल रहा है जहाँ विभिन्न दिव्य प्राणियों ने तपस्या की और अपनी आध्यात्मिक छाप छोड़ी, जिससे अनगिनत तीर्थयात्री आध्यात्मिक शांति की तलाश में आकर्षित हुए। बद्रीनाथ के आसपास की किंवदंतियाँ हिंदू पौराणिक कथाओं की समृद्ध टेपेस्ट्री से बुनी गई हैं, जो इसे पीढ़ियों से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाती है।
मठ: ज्योतिर्मठ | बीज मंत्र: अयमात्मा ब्रह्म | वेदः अथर्ववेद | सन्यासी नाम : गिरि, पर्वत, सागर | प्रथम मठाधीश: आचार्य टोटक | दिशा: उत्तर | सहायक शिव मंदिर: केदारनाथ ज्योतिर्लिंग |
नवरात्रि (माँ चंद्रघंटा पूजा), सिन्दूर तृतीया
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🪐 शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
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