भारत में बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी, रामेश्वरम और द्वारका को चार धाम कहा जाता है | हिन्दू धर्म में इनकी बहुत मान्यता है और इनमे अतुलनीय और अविभाज्य विश्वास ही श्री विष्णु भगवान में आस्था का उदाहरण है |
ये चारो धाम भगवान विष्णु को ही समर्पित हैं | हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवन विष्णु रामेश्वरम में स्नान, जगन्नाथपूरी में भोजन, बद्रीनाथ में ध्यान और द्वारका में विश्राम करते हैं | इन चारों धामों का अस्तित्व तो सतयुग के समय से है परन्तु इनको पुनस्थातपित आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में किया |
इन चारो धामों की यात्रा पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए की जाती है |भारत के उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारका है |
चार धाम महादेव शिव और विष्णु भगवान की शाश्वत मित्रता के भी प्रतीक है |
बद्रीनाथ के साथ केदारनाथ, रामसेतु और रामेश्वरम (राम के ईश्वर), द्वारिका और सोमनाथ और जगन्नाथ के साथ लिङ्गराज की जोड़ी इसी को दर्शाती है |
बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड में चामौलि जिले में अलकनंदा नदी के किनारे पर बसा है | बद्रीनाथ धाम सतयुग का प्रतीक है जहाँ नर और नारायण ने तपस्या की थी और पूरा क्षेत्र बेर के पेड़ यानी बेरियों से घिरा हुआ था | एक मान्यता और है के एक बार लक्ष्मी जी विष्णु भगवान के चरण दबा रहीं थी तभी एक तपस्वी मुनि वहां आये और विष्णु भगवान को भला बुरा कहा | इससे विष्णु भगवान क्रोधित होकर तपस्या करने लगे | तब माता लक्ष्मी ने बेरी के वृक्ष बन कर विष्णु भगवान की सेवा करी | तपस्या पूर्ण के बाद विष्णु भगवान ने लक्ष्मी जी को वरदान दिया के उनका नाम नारायण से पहले लिया जायेगा | इसलिए लक्ष्मीनारायण स्वरुप की पूजा होती है | बद्री माता लक्ष्मी और नाथ विष्णु भगवान का प्रतीक है इसलिए बद्रीनाथ (लक्ष्मी जी का नाम पहले) कहा जाता है | पूरा क्षेत्र बेरी के पेड़ो से घिरा था तो पूरे क्षेत्र को ही बद्रीनाथ धाम कहा जाता है | बद्रीनाथ में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरुप की पूजा की जाती है | जिनकी मूर्ति 1 मीटर ऊँची है और शालिग्राम (जीवाश्म) से निर्मित है |
"जो जाये बद्री, फिर कभी न जाये उदरी"
ये बद्रीनाथ धाम की महत्त्व या फिर कहें की उपयोगिता को दर्शाता है | जिसका अर्थ है के जो एक बार बद्रीनाथ धाम आ जाते हैं उन्हें फिर उदर (गर्भ/पेट) से जन्म नहीं लेना पड़ता |
रामेश्वरम त्रेता युग का प्रतीक है | रामेश्वरम भारत के दक्षिण में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है |त्रेता युग में श्री राम जी ने लंका पर चढाई करने से पूर्व भगवान शिव की पूजा की थी और श्री राम द्वारा बनाया गया शिवलिंग यानी राम के ईश्वर रामेश्वर की स्थापना की थी | यहाँ स्थापित शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंग में भी मान्यता प्राप्त है |
श्री राम ने युद्ध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए यहाँ आकर पूजा की और इस स्थान को काशी की तरह महत्वता देने के लिए हनुमान जी को एक शिवलिंग काशी से लाने को कहा | हनुमान जी कशी से एक और शिवलिंग लेकर आये और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास काशी के शिवलिंग की स्थापना कर दी | छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ शिवलिंग के नाम से पूजा जाता है | यही दोनों शिवलिंग मुख्य मंदिर में पूजे जाते है |
द्वारिका भगवान विष्णु के द्वापर अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है | द्वारकाधीश मंदिर द्वारका गुजरात के द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहां आज से 5000 वर्ष पूर्व कृष्ण भगवान ने मथुरा छोड़ने के बाद अपनी नगरी बसाई थी।
द्वारका भगवान श्री कृष्ण के कहने पर देव शिल्पी विश्वकर्मा ने बसाई थी | जब जरासंध मथुरा पे बार बार आक्रमण करता था तो भगवान श्री कृष्ण अपनी प्रजा को बचाने लिए द्वारका आकर बस गए थे | द्वारका में विष्णु भगवान के द्वारकाधीश मंदिर के साथ साथ और भी मंदिर हैं | जैसे रुक्मणि मंदिर, रणछोड़ जी का मंदिर, हनुमान मंदिर और राधा, सत्यभामा, जामवंती और भी मंदिर हैं |
श्री जगन्नाथ मंदिर भारत के पूर्व में उड़ीसा के पूरी शहर में स्थित है | जगन्नाथ का अर्थ है जगत के नाथ | जगन्नाथ मंदिर के कारण इस शहर को जगन्नाथ पूरी भी कहा जाता है | ये भगवान विष्णु को समर्पित है | यहाँ भगवान विष्णु के जगन्नाथ स्वरुप के साथ साथ कृष्ण के बड़े भ्राता बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्ति विद्यमान हैं |
हर साल इन तीनों मूर्तियों को रथ में बिठा कर शहर में घुमाया जाता है | और इस उत्सव को वार्षिक रथ यात्रा के रूप में बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है |
पारम्परिक कथानुसार मालवा नरेश इन्द्रधुम्न को स्वपन में भगवान विष्णु की नीलमणि से निर्मित एक मूर्ति देखि और राजा ने निश्चय किया की भगवान विष्णु की ठीक वैसी ही मूर्ति बनवायएगा | तब भगवान विष्णु ने स्वपन में राजा को बताया के पूरी में समुंदर के तट पर एक लकड़ी का गट्ठा मिलेगा | उससे मूर्ति का निर्माण हो जायेगा | तब स्वयं विश्वकर्मा ने बूढ़े कारीगर के रूप में आकर कहा के वो मूर्ति बनाएगा |
मूर्तियां पूर्ण नहीं हो पाई थी फिर भी राजा ने उन्हें ही स्थापित करा दिया | और वही मूर्तियां वार्षिक रथ यात्रा में घुमाई जाती है और उन्ही की पूजा की जाती है |
हिंदू धर्म में संत समाज शंकराचार्य द्वारा नियुक्त चार मठों के अधीन है। इसको समझने के लिए चार मठों की परंपरा को जानना आवश्यक है।
चार मठों से ही गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता है। शंकराचार्य जी ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जिनके नाम के साथ भी शंकराचार्य लगाया जाता है | जो व्यक्ति इनमे से किसी भी मठ के अंतर्गत संन्यास लेता हैं वह दसनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है। ये चार मठ निम्न हैं:-
वेदान्त ज्ञानमठ
मठः वेदांत ज्ञानमठ | बीज मंत्र: अहम् ब्रह्मास्मि | वेदः यजुर्वेद | सन्यासी नाम : भारती, पुरी | प्रथम मठाधीश : आचार्य सुरेश्वरजी | दिशा: दक्षिण | सहायक शिव मंदिर: श्री रंगनाथस्वामी मंदिर | कुंभ: नासिक
वेदान्त ज्ञानमठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम में स्थित है। वेदान्त ज्ञानमठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
गोवर्धन मठ
मठ: गोवर्धन मठ | बीज मंत्र : प्रज्ञानं ब्रह्म | वेदः ऋग्वेद | सन्यासी नाम : अरण्य | प्रथम मठाधीशः पद्मपाद | दिशा: पूर्व | सहायक शिव मंदिर: लिंगराज मंदिर | कुंभ : प्रयागराज
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
शारदा मठ
मठ: शारदा मठ | बीज मंत्र: तत्वमसि | वेदः सामवेद | सन्यासी नाम : सरस्वती, तीर्थ, आश्रम | प्रथम मठाधीशः हस्तमालक (पृथ्वीधर) | दिशा: पश्चिम | सहायक शिव मंदिर: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग | कुंभ : उज्जैन
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
ज्योतिर्मठ
मठ: ज्योतिर्मठ | बीज मंत्र : अयमात्मा ब्रह्म | वेदः अथर्ववेद | सन्यासी नाम : गिरि, पर्वत, सागर | प्रथम मठाधीश : आचार्य टोटक | दिशा: उत्तर | सहायक शिव मंदिर: केदारनाथ ज्योतिर्लिंग |
उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ। ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं सागर सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे।
उक्त मठों तथा इनके अधीन उपमठों के अंतर्गत संन्यस्त संतों को गुरु बनाना या उनसे दीक्षा लेना ही हिंदू धर्म के अंतर्गत माना जाता है। यही हिंदुओं की संत धारा मानी गई है।
विक्रम संवत् 2082
विश्व पृथ्वी दिवस
🔆 मंगलवार, 22 अप्रैल 2025