गंगोत्री

  • Updated: Sep 28 2023 11:56 AM
गंगोत्री

गंगोत्री भारत के उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी ज़िले में स्थित एक प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थल है। गंगोत्री नगर से 19 किमी दूर गोमुख है, जो गंगोत्री हिमानी का अन्तिम छोर है और गंगा नदी का उद्गम स्थान है।

गंगोत्री से ही भागीरथी नदी निकलती है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। जब राजा भागीरथ ने तपस्या करके गंगा को देवलोक से पृथ्वी पर आने के लिए आग्रह किया था तब देवनदी गंगा धरती पर आयी थी और राजा भगीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी रखा गया। गंगा नदी गोमुख से निकलती है।

कथा

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्&zwjवमेध यज्ञ कराया | इसमें इनका घोड़ा जहां-जहां गया उनके 6,००० बेटों ने उन जगहों को अपने आधिपत्&zwjय में ले लिया। इससे देवराज इंद्र को शंका हो गयी और उन्होंने इस घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया जिसकी वजह से सागर के पुत्रों ने कपिल ऋषि का अनादर कर दिया  और घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख हुआ। उन्&zwjहोंने राजा सगर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख हो गए। राजा सगर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि को दया आयी और उन्&zwjहोंने राजा सगर को कहा कि अगर स्&zwjवर्ग में प्रवाहित होने वाली देवनदी गंगा पृथ्&zwjवी पर जाए और उसके पावन जल का स्&zwjपर्श इस राख से हो जाए तो उनके पुत्र जीवित हो जायेंगे। लेकिन राजा सगर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सगर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्&zwjवर्ग से पृथ्&zwjवी पर लाने के लिए तपस्या की और उनको सफलता मिली जिसके परिणाम स्वरुप देवी गंगा धरती पर आने के लिए अपनी सहमति दी। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्&zwjपर्श से राजा सागर के पुत्र जीवित हुए।

हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्ष प्रदान करने वाली माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग गंगा नदी में अपने पुर्वजों का श्राद्ध और पिण्&zwjड दान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना और पूजा आदि करने के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्&zwjनान आदि के लिए जाते हैं।

गंगोत्री तीर्थ में और भी पवित्र स्थल हैं जैसे की भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गौमुख, जलमग्न शिवलिंग, आदि | गंगोत्री के आस पास और भी आकर्षक प्रयटन स्थल हैं |

मुखबा गांव

भागीरथी के अलावा इस गांव के निवासी ही गंगोत्री मंदिर के पुजारी हैं जहां मुखीमठ मंदिर भी है। प्रत्येक वर्ष दीवाली में जब गंगोत्री मंदिर बंद होने पर जाड़ों में देवी गंगा को एक बाजे एवं जुलुस के साथ इस गांव में लाया जाता है। इसी जगह जाड़ों के 6 महीनों, बसंत आने तक गंगा की पूजा होती है जब प्रतिमा को गंगोत्री वापस लाया जाता है। केदार खंड में मुख्यमठ की तीर्थयात्रा को महत्वपूर्ण माना गया है। इससे सटा है मार्कण्डेयपुरी जहां मार्कण्डेय मुनि के तप किया तथा उन्हें भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि के विनाश का दर्शन कराया गया। किंबदन्ती अनुसार इसी प्रकार से मातंग ऋषि ने वर्षों तक बिना कुछ खाये-पीये यहां तप किया था।

भैरों घाटी

धाराली से 16 किलोमीटर तथा गंगोत्री से 9 किलोमीटर दूर एक पर्यटन स्थल। भैरों घाटी, जध जाह्नवी गंगा तथा भागीरथी के संगम पर स्थित है। यहां तेज बहाव से भागीरथी गहरी घाटियों में बहती है, जिसकी आवाज कानों में गर्जती है। वर्ष 1985 से पहले जब संसार के सर्वोच्च जाधगंगा पर झूला पुल सहित गंगोत्री तक मोटर गाड़ियों के लिये सड़क का निर्माण नहीं हुआ था, तीर्थयात्री लंका से भैरों घाटी तक घने देवदारों के बीच पैदल आते थे और फिर गंगोत्री जाते थे। भैरों घाटी हिमालय का एक मनोरम दर्शन कराता है, जहां से आप भृगु पर्वत श्रृंखला, सुदर्शन, मातृ तथा चीड़वासा चोटियों के दर्शन कर सकते हैं।

नंदनवन तपोवन

गंगोत्री से 25 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर एक कठिन संकरा रास्ता नंदनवन की और जाता है जो भागीरथी चोटी के आधार शिविर गंगोत्री से 25 किलोमीटर दूर है। यहां से शिवलिंग चोटी का मनोरम दृश्य दिखता है। गंगोत्री नदी के मुहाने के पार तपोवन है जो यहां अपने सुंदर चारागाह के लिये मशहूर है तथा शिवलिंग चोटी के आधार के चारों तरफ फैला है।

केदारताल

गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर इस मनोरम झील तक की चढ़ाई में अनुभवी आरोहियों भी परीक्षा होती है। बहुत ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों पर चढ़ने के लिये एक मार्गदर्शक की नितांत आवश्यकता होती है। रास्ते में किसी प्रकार की सुविधा नहीं है इसलिये सब कुछ पहले प्रबन्ध करना होता है। झील पूर्ण साफ है, जहां विशाल थलयसागर चोटी है। यह स्थान समुद्र तल से 15,000 फीट ऊंचा है तथा थलयसागर जोगिन, भृगुपंथ तथा अन्य चोटियों पर चढ़ने के लिये यह आधार शिविर है। जून-अक्टुबर के बीच आना सर्वोत्तम समय है। केदार ग्लेशियर के पिघलते बर्फ से बनी यह झील भागीरथी की सहायक केदार गंगा का उद्गम स्थल है, जिसे भगवान शिव द्वारा भागीदारी को दान मानते हैं। चढ़ाई थोड़ी कठिन जरूर है पर इस स्थान का सौदर्य आपकी थकावट दूर करने के लिये काफी है।

मंदिर

पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर मोहित हो जाते हैं |

गढ़वाल के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं सदी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण सेमवाल पुजारियों केेे निवेदन पर उसी जगह जहां भागीरथ ने तप किया था। माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी।

यात्रा

गंगोत्री धाम पहुंचने के लिये सबसे पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा। उत्तरकाशी पहुंचने के बाद हरसिल और गंगोत्री के लिए बस / टैक्सी आसानी से मिल जाएगी। अगर आप गौमुख जाना चाहते हैं तो आपको गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। यात्रा मार्ग - यमुनोत्री - ब्रह्मखाल - उत्तरकाशी - नेताला - मनेरी - गंगनानी- हरसिल-गंगोत्री |