यमुनोत्री

  • Updated: Sep 28 2023 11:56 AM
यमुनोत्री

यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले में एक मंदिर है। यह मंदिर देवी यमुना का मंदिर है। यमुना या सूर्यतनया, सूर्यतनया का शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री अर्थात् यमुना। पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य देव की दो पत्नियां थी छाया और संज्ञा जिनसे यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु नमक पुत्र पुत्रियां प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना जी यमराज और शनिदेव की बहन  मानी जाती हैं | पुराणों में एक और उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना यम की बहन है इसलिए कहा है के युमना में स्नान करने वालों पर यम थोड़ा रहम करते हैं | यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए "ओम् सदृश "ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है,वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है।वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।

यमुना का उदगम स्&zwjथल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्&zwjलेशियर है।

ऐसी मान्यता है के यमुना में स्नान मात्र से सभी पाप मुक्त हो जाते हैं और असमय-मृत्यु से भी रक्षा होती है | सर्दियों में ये जगह अति दुर्लभ हो जाने के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और देवी यमुना की मूर्ति/ प्रतीक चिन्ह को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में लाया जाता है और अगले छह मास तक यमुना देवी की मूर्त को शनि मंदिर में रखा जाता है |

महत्त्व

सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी। आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।

तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रता सर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम |

 

इसका अर्थ है - "यमुना के उद्गम में स्नान करने और जल ग्रहण से मनुष्यों के पापों का हरण होता है और उसके सातों कुल पवित्र रहते हैं|"

मंदिर

मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है।यँहा पर मई से अक्टूबर तक श्रद्धालु आते हैं। सर्दियों में यह स्थान पूर्णरूप से बर्फ से ढक जाता है |

यमुनोत्तरी मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्तरी मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन 1885 में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है। 

यात्रा

यमुनोत्री धाम तक पहुंचने के लिए 5-6 किमी का ट्रेक तय करना पड़ता है। यात्रा मार्ग इस प्रकार है | ऋषिकेश -> नरेंद्रनगर -> चमाब -> ब्रह्मखाल -> बरकोट -> स्यानाचट्टी - -> हनुमानचट्टी -> फूलचट्टी -> जानकीचट्टी -> यमुनोत्री |