ब्रज धाम

  • Updated: Aug 06 2023 06:58 PM
ब्रज धाम

ब्रज भारत में स्थित उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के उन क्षेत्रों को मिलकर बनता है जो श्री कृष्ण से सम्भंधित हैं और जहाँ श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में लीलाएं की जैसे मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, गोकुल, गोवेर्धन और भी अन्य क्षेत्र |

जब भगवान श्री कृष्ण अपनी दिव्य लीलाओं को करने के लिए पृथ्वी पर उतरते हैं, तो वे अपने साथ गोलोक वृंदावन के रूप में जाना जाने वाला अपना शाश्वत निवास, अपने सबसे अंतरंग सहयोगियों, दोस्तों, नौकरों और विभिन्न अन्य सामानों के साथ लाते हैं। वृंदावन की यह पवित्र भूमि जिसे धाम के नाम से भी जाना जाता है | वृंदावन और उसके आस पास के क्षेत्र को भी ब्रज धाम कहते हैं | ब्रज आध्यात्मिक दुनिया में भगवान के दिव्य निवास से अलग नहीं है | भौतिक दृष्टि से धाम पृथ्वी पर किसी भी अन्य स्थान की तरह लग सकता है, लेकिन शुद्ध भक्तों और पूर्ण योगियों के लिए, यह पूरी तरह से आध्यात्मिक निवास है जो अपने आप में भक्ति और आध्यात्मिक प्रेम से सराबोर रहता है।

वृंदावन-धाम हमेशा बढ़ने वाली खुशी का स्थान है। वृन्दावन लताओं और सुन्दर पुष्पों से आच्छादित मनोकामना पूर्ण वृक्षों से सुशोभित है। यह भूमि उन रत्नों से बनी है जिनकी चकाचौंध करने वाली महिमा एक समय में आकाश में उगने वाले असंख्य सूर्यों के समान है। उस भूमि पर कामनावृक्षों का उद्यान है, जो सदैव दिव्य प्रेम की वर्षा करता है। यहाँ राधा कृष्ण के अनेक मंदिर हैं जहाँ भक्त भक्ति रस में डूब कर कृष्ण और राधा का प्रेम से गुणगान करते हैं | वृन्दावन के मंदिरों की शोभा देखते ही बनती है | ब्रज धाम में आने वाले धार्मिक स्थानों के नाम हैं - मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, बरसाना, गोवेर्धन, बल्देव, नंदगाव और कोकिलावन |

बृज की चौरासी कोस यात्रा

बृज को लीलास्थली और भगवान कृष्ण का शाश्वत निवास माना जाता है। ब्रज भूमि की तीर्थयात्रा सबसे पुण्यदायी &ldquoचौरासी कोस यात्रा&rdquo मानी जाती है | "84 कोश यात्रा" ब्रज क्षेत्र की 252 किलोमीटर (चौरासी या हिंदी में 84 कोस) यात्रा (तीर्थ) है जिसमें 12 वन (वन), 24 उद्यान, 20 कुंड (तालाब) और बरसाना, नंद गाँव, वृंदावन, मथुरा, कोसी, राधा कुंड और गोवर्धन आदि जैसे गाँव शामिल हैं। यह सात दिनों की यात्रा होती है।

मथुरा

मथुरा पवित्र निगम यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। पुराणों के अनुसार, भगवान राम के छोटे भाई श्री शत्रुधन ने लवणासुर को मारने के बाद मथुरा शहर की स्थापना की थी। मथुरा में कंस के महल की जेल में ही श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जहाँ आज जन्म भूमि के नाम से प्रसिद्ध मंदिर है | मथुरा में द्वारकाधीश (श्री कृष्ण को ही द्वारकाधीश कहा जाता है) जी का प्रसिद्द मंदिर है और विश्राम घाट, कंकाली देवी, रंगेश्वर महादेव नमक और भी प्रसिद्द जगह हैं | अक्षया नवमी और देवठान एकादशी के दिन भक्त मथुरा नगर की परिक्रमा करते हैं जिसकी दूरी लगभग 15 KM होती है |

गोवर्धन

गोवेर्धन मथुरा से 25 किमी की दूरी पर मथुरा-डीग मार्ग पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को देवताओं के राजा इंद्र के क्रोध के कारण हुई भयंकर बारिश और तूफान से बचाने के लिए इस पर्वत (गिरिराज पर्वत) को अपनी छोटी उंगली (उंगली) पर सात दिन और रात तक रखा था। इसी घटना के बाद श्री कृष्ण को 56 भोग लगाने की परम्परा शुरू हुयी थी | क्यूंकि माता यशोदा श्री कृष्ण को दिन में 8 पहर भोजन कराती थी, जब श्री कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाया था तब 7 दिन तक वर्षा होने के कारण श्री कृष्ण ने और बृजवाषियों ने कुछ नहीं खाया था | तब माता यशोदा ने श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनाये थे तभी से 56 भोग की प्रथा शुरू हो गयी | गोवेर्धन में दानघाटी मंदिर, जातिपुरा, पुंछरी कलोथा (राजस्थान), कुसुम सरोवर, राधाकुंड, मानसीगंगा, उद्भवकुंड, गोविंद कुंड आदि प्रसिद्ध स्थान हैं | गोवेर्धन की परिक्रमा 21 KM की होती है | यूँ तो गोवेर्धन की परिक्रमा पूरे साल में कभी भी लगा सकते हैं, भक्त पूरे साल परिक्रमा करते रहते हैं  और पूर्णिमा एकादशी एवं गुरुपूर्णिमा के दिन परिक्रमा करना विशेष फलदायी होती है |

वृंदावन

वृंदावन ब्रजमंडल का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह वृंदावन बृज का दिल है। यह श्री राधा कृष्ण की अवर्णनीय दिव्य लीलाओं का साक्षी रहा है। वृन्दावन मथुरा से 12 किमी की दूरी पर स्थित है | वृन्दावन में बहुत से मंदिर हैं जिनमें से श्री बांके बिहारी मंदिर, मदन मोहन मंदिर, केसीघाट, इस्कॉन मंदिर, राधा बल्लभ, रंग जी का मंदिर, प्रेम मंदिर और निधि वन आक्रषण के मुख्य केंद्र हैं | वृन्दावन की परिक्रमा लगभग 15 KM की है जो अक्षय तृतीया और पवित्र तिथियों को विशेष फलदायी रहती है |

बरसाना

बरसाना मथुरा शहर से 47 किमी दूर है और भगवान श्री कृष्ण की आनंदमयी शक्ति श्री राधाजी की पवित्र भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान लगभग 200 फुट ऊँचे पहाड़ की ढलान पर स्थित है। इस पहाड़ी का नाम ब्रहत्सानु या ब्रह्मसानु है और यहाँ सांकरी खोर, राधा रानी मंदिर, प्रिया कुंड, दानगढ़, मनगढ़, विलासगढ़ आदि जैसे पवित्र स्थान हैं। इनमें राधा रानी मंदिर सबसे प्रमुख है | बरसाना की परिक्रमा लगभग 11 KM की है जिसके दो भाग हैं 7 किमी की बड़ी परिक्रमा (ब्रह्मंचल पर्वत) और 4 किमी की (छोटी परिक्रमा) है जिसका अधिकमास में विशेष महत्त्व है |  

नंदगांव और गोकुल

नंदगांव भगवान कृष्ण के बचपन का स्थान और उनके पालक पिता नंदराय जी का गाँव है। यहां नंदराय जी का एक विशाल मंदिर है, जिसे नंदालय या नंदभवन भी कहा जाता है। मंदिर में यशोदा, नंदबाबा, श्रीकृष्ण, बलदेव ग्वालबाल और श्रीराधा जी की मूर्तियां स्थापित हैं। इसकी परिक्रमा लगभग 4 KM की है जिसमें यशोदा कुंड, मोती कुंड, ललिता कुंड, मोर कुंड, चरण पहाड़ी, पवन सरोवर नंद मंदिर आदि पवित्र स्थान आते हैं | गोकुल मथुरा से 10 किमी दूर यमुना के सुरम्य तट पर स्थित है। पुराणों के अनुसार कंस के कारागार में जन्म लेने के बाद वसुदेव ने बाल कृष्ण को कंस से छिपाकर छोड़ दिया और यमुना के उस पार गोकुल छोड़ गए, जहां उनका बचपन बीता। गोकुल की परिक्रमा 10 KM की है जिसमें बजरंग घाट, पूतना कुंड, हरिहर टीला, रामरेती, श्रीकुंड, गोप तलाई, कमल कुंड, ठकुरानी घाट, यशोदा घाट आदि पवित्र स्थान आते हैं। शरद पूर्णिमा, अक्षय तृतीया, एकादशी, पूर्णिमा और अक्षय नवमी को परिक्रमा का विशेष महत्त्व है |

कोकिला वन

ब्रज के प्रमुख वनों में से एक यहां शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और शनिवार को परिक्रमा करते हैं जिसकी दूरी लगभग 3 KM की है | कोकिलावन बिहारी, शनि देव मंदिर सूर्य कुंड आदि पवित्र स्थान परिक्रमा में आते है और शनिवार, ग्रहण के समय और अमावश्य के समय परिक्रमा का विशेष महत्त्व होता है |

बल्देव

बल्देव मथुरा से 20 किमी की दूरी पर स्थित बलदेव नगरी को श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का स्थान माना जाता है। यहाँ श्री बलदेव जी (दाऊजी) का विशाल मन्दिर है। मंदिर में श्रीदाऊजी और रेवतीजी की सुन्दर विशाल मूर्तियाँ स्थापित हैं। बल्देव की परिक्रमा लगभग 5 KM की है जिसमे क्षीर सागर, दाऊजी मंदिर जैसे पवित्र स्थान आते है और रामनवमी, अक्षय तृतीया तथा देवोत्थान एकादशी के दिन परिक्रमा का विशेष महत्व होता है |

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