हरिद्वार उत्तराखण्ड राज्य में एक बहुत प्राचीन तीर्थ है जो अब बहुत ही पवित्र नगर भी बन चूका है | हरिद्वार का अर्थ है हरी का द्वार | गंगा नदी पहाड़ी क्षेत्रों से पौराणिक काल में इसे माया के नाम से जाना जाता था और यहाँ पर कपिल मुनि का तपोवन था तो कपिला के नाम से प्रसिद्ध था |
गंगा नदी को भगीरथ ने तपस्या करके धरती पर बुलाया था तभी से इस तीर्थ की मान्यता है | गंगा नदी अपने गोमुख से 253 किमी की यात्रा करके सबसे पहले हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के कहा जाता है जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का एक अर्थ "हरि का द्वार" होता है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जब समुंद्र मंथन के बाद जब धनवंतरि जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे और राक्षस जब कलश को पाना चाहते थे तब अमृत कलश से कुछ बुँदे पृथ्वी पर गिरी थी | जहाँ जहाँ ये बुँदे गिरी थी हरिद्वार भी उन्हीं जगहों में से एक है | जहाँ अमृत की बुँदे गिरी थी वो जगह हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुंड के नाम से प्रसिद्ध है | हर की पौड़ी को हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट मानते है जो भी यहाँ स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है |
जिन जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं: - उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयागराज। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर 12वें वर्ष में एक महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों बीत जाने के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होता है और फिर से पहले स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। पूरी दुनिया से करोड़ों श्रद्धालु, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए जमा होते हैं और पूरे रीति रिवाज से और श्रद्धा से शास्त्रविधि पूर्वक स्नान करते हैं |हरिद्वार में गंगा आरती बहुत ही प्रसिद्ध है और संध्या आरती की वैभवता बहुत ही सुन्दर होती है |
हरिद्वार में अनेक धार्मिक स्थल है
'पैड़ी' का अर्थ होता है 'सीढ़ी'। एक मान्यता है कि यहीं दक्ष ने यज्ञ किया था और सती भी यहीं भस्म हुयी थी। इसके बाद शिव जी ने क्रोध से दक्ष-यज्ञ-विध्वंस कर दिया और उसके बाद यज्ञ की पूर्णता के लिए हरिद्वार में यहीं पर भगवान विष्णु की स्तुति की गयी थी और यहीं वे प्रकट हुए थे। जब पृथ्वी पर भगवान् विष्णु आये थे तब धरती पर भगवान् विष्णु के पैर यहाँ पड़ने के कारण इस स्थान को 'हरि की पैड़ी' कहा गया जो अब 'हर की पौड़ी' बन गया है। इसे हरिद्वार का हृदय माना जाता है।
'हर की पौड़ी' हरिद्वार का मुख्य स्थान है। ज्यादातर लोग यहीं पर स्नान करने के लिए आते हैं। हर की पौड़ी का सबसे घाट ब्रह्मकुण्ड है और हर की पौड़ी पर होने वाली माँ गंगा की आरती यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है | संध्या आरती में स्वर और संगीत का अनूठा संगम और जलते हुए दीपक इन्द्रियों को तृप्त करने के लिए बहुत ही सुगम साधन है | 
माता चण्डी देवी का यह प्रसिद्ध मन्दिर 'नील पर्वत' के शिखर पर स्थित है। एक कथा के अनुसार, राक्षसों के राजा शुम्भ-निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड का देवी चण्डी ने यहीं पर संहार किया था, जिसके बाद इस स्थान को चण्डी देवी के नाम से जाना जाने लगा | मंदिर में विराजमान मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। ये मन्दिर चंडीघाट से 3 किमी दूरी पर स्थित है। मनसा देवी की अपेक्षा यहाँ की चढ़ाई कठिन है, परन्तु अब रोपवे ट्राॅली सुविधा शुरू हो जाने से अधिकांश यात्री सुगमतापूर्वक उसी से यहाँ जाते हैं, लेकिन इसके लिए लंबी कतार में लगा रहने पड़ता है |
हर की पैड़ी से पश्चिम की ओर शिवालिक श्रेणी में एक पर्वत के शिखर पर मनसा देवी का मन्दिर विद्ध्मान है। मनसा देवी का अर्थ है वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) को पूर्ण करती हैं। मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएँ हैं, पहली तीन मुखों व पाँच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ।
मनसा देवी के मंदिर तक जाने के लिए यों तो रोपवे ट्राली की सुविधा भी शुरू हो चुकी है और ढेर सारे यात्री इसका लाभ भी उठाते हैं परन्तु इसके लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है | इसके अलावा मनसा देवी के मंदिर तक जाने के लिए पैदल मार्ग भी बिल्कुल सुगम है। और यहाँ की चढ़ाई भी सामान्य है। इस रस्ते से हर की पैड़ी, वहाँ की गंगा की धारा तथा नील पर्वत के पास वाली गंगा की मुख्यधारा (नीलधारा) एवं हरिद्वार नगरी के एकत्र दर्शन होने पर श्रद्धालुओं को अलग ही आनंद की अनुभूति होती है | प्रातःकाल यहाँ की पैदल यात्रा करके और वापिस लौटने पर गंगा में स्नान कर लिया जाय तो थकावट भी मिट जाती है और मन भी प्रफुल्लता हो उठता है |
माया देवी (हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी) एक प्राचीन मन्दिर और एक सिद्धपीठ माना जाता है। ये वही स्थान है जहाँ देवी सती की नाभि और हृदय गिरे थे | यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं।
वैष्णो देवी मन्दिर से कुछ ही आगे भारतमाता मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने करवाया था | श्रीमती इंदिरा गाँधी के द्वारा इस मंदिर का लोकार्पण हुआ था। ये मंदिर अपने आप में निराला है और यह मंदिर काफी प्रसिद्ध भी है। इसके अलग अलग मंजिलों पर शूर मंदिर, मातृ मंदिर, संत मंदिर, शक्ति मंदिर, तथा भारत दर्शन के रूप में मूर्तियों तथा चित्रों के माध्यम से भारत की विभिन्न छवियों को अंकित किया गया है। ऊपर विष्णु मंदिर तथा सबसे ऊपर शिव मंदिर है। हरिद्वार आने वाले यात्रियों के लिए भारत माता मंदिर के दर्शन के साथ साथ देशभक्ति की प्रेरणा का भी अनूठा साधन है |
'भारत माता मंदिर' से कुछ ही दूरी पर आसानी से सप्तर्षि आश्रम तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ जाने पर सड़क की दाहिनी ओर सात धाराओं में बँटी हुयी गंगा की निराली प्राकृतिक छवि दर्शकों के लिए बहुत ही सुन्दर दृश्य है। मान्यता है कि यहाँ सप्तर्षियों ने तपस्या की थी और उनके तप में बाधा न पहुँचाने इसी बात का ख्याल रखते हुए गंगा सात धाराओं में बँटकर उनके आगे से बह गयी थी। यहीं पर सड़क की दूसरी ओर 'सप्तर्षि आश्रम' का निर्माण किया गया है। यहाँ मुख्य मंदिर शिवजी का है और उसकी परिक्रमा में सप्त ऋषियों के छोटे छोटे मंदिर दर्शनीय हैं। स्थान प्राकृतिक शोभा से परिपूर्ण है। अखंड अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है और कुछ-कुछ दूरी पर सप्तर्षियों के नाम पर सात कुटिया बनी हुई है, जिनमें आश्रम के लोग रहते हैं।
पर्व
धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर में कई धार्मिक त्यौहारों का आयोजन किया जाता हैं जिनमें प्रमुख हैं :- कवद मेला, सोमवती अमावस्या मेला, गंगा दशहरा, गुघल मेला जिसमें अनुमानतः 20-25  लाख लोग भाग लेते हैं | इस के अतिरिक्त जब बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशिः में प्रवेश करता है तब यहाँ कुंभ मेला भी आयोजित होता है |
विक्रम संवत् 2082
🪐 शनिवार, 17 मई 2025