गोपियाँ और उनके पूर्वजन्म

  • Updated: Jul 12 2024 08:00 PM
गोपियाँ और उनके पूर्वजन्म

गोपियाँ और उनके पूर्वजन्म

हम सभी ने मथुरा के ब्रज मंडल के विषय में सुना है और ब्रज में वृन्दावन धाम सबसे लोकप्रिय है और वृन्दावन में श्री कृष्ण द्वारा रासलीला भी अत्यंत प्रचलित है। वृंदावन में श्री कृष्ण अपनी सखियों के संग प्रेमपूर्ण रासलीला करते थे। परन्तु ये गोपियाँ कौन थी और ऐसा कौनसा पुण्य कर्म था जिसके फलस्वरूप उन्हें श्री कृष्ण भगवान का संग मिला।

गर्ग संहिता के अनुसार स्वयं ब्रह्मा जी ने श्री भगवान से इस विषय में पुछा था। तब श्री भगवान ने कहा था के पूर्व के युगों में जो श्रुतियाँ, मुनियों की पत्नियां, अयोध्या की महिलाएं, यज्ञ में स्थापित की गयी सीता, जनकपुर और कौशल देश की सुंदरियाँ जिनको मैं पूर्वजन्मों में वर दे चूका हूँ, ये सभी मेरे ब्रज मंडल में गोपी रूप में पधारेंगी।

श्री भगवान ने आगे कहा - पूर्वकाल में श्रुतियों ने श्वेतद्वीप जाकर वहां मेरे विराटरूप परब्रह्म स्वरुप का मधुर वाणी से गुणगान किया तब विराटरूप ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने गोलोक धाम के दर्शन कराये और उनसे मन चाहा वर मांगने को कहा। तब श्रुतियों ने कहा - हे प्रभु ! आपके करोड़ों कामदेव के समान मनोहर श्री विग्रह देखकर हमारे अंदर कामिनी भाव उत्पन्न हो गया है  और आपसे मिलन की उत्कृस्ट इच्छा जग रही है ! हम विरह में हैं हमारी इस अभिलाषा को पूर्ण कीजिये।

ये सब सुनकर श्री हरि बोले - आप सभी की इच्छा बहुत ही दुर्लभ और दुर्घट हैं परन्तु ये पूरी अवश्य होगी। आप सब सारस्वत कल्प के बीतने के बाद सभी श्रुतियाँ ब्रज में गोपियाँ होंगी। वृन्दावन के रासमण्डल मैं तुम्हारा प्रियतम बनूँगा, तुम सबका मुझमे अटूट प्रेम होगा जो सभी प्रेम से ऊपर होगा। इस प्रकार से श्रुतियाँ गोपियों के रूप में वृन्दावन में पधारी।

और अब अन्य गोपियों के बारे में सुनिए।

त्रेतायुग में जब देवताओं की रक्षा और राक्षसों के संहार के लिए श्री रामचंद्र के रूप में अवतरित हुए थे और सीता स्वयंवर के समय कमलनयन श्री राम को देखकर जनकपुर की सुंदरियां प्रेमविह्ल हो गयीं। अपना अभिप्राय प्रकट किया— ‘राघव ! आप हमारे परम प्रियतम बन जाइये।’ तब श्रीराम ने कहा— ‘सुनिन्द्रे ! तुम शोक मत करो। प्रारब्ध के अनुसार मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा। तुमलोग परम श्रद्धा और भक्ति के साथ स्त्री, दान, तप, शौच एवं सत्यादिक व्रतों का पालन करती रहो। तुम्हें व्रज में गोपी होने का सुदर्शन प्राप्त होगा।’ इस प्रकार वर देकर धनुर्धारी करुणानिधि श्रीराम ने अयोध्यावासी लौटने के लिये प्रस्थान कर दिया। उस समय मायमी अपने प्रताप से उनका भूगोलुलन्तन पतुराजमाजीको पारस को दिया था। कौशल-जनपद की स्त्रियों भी राजपथसे जाते हुए उन कमनीय-कान्ति रामको देखा। उनकी सुन्दरता कामदेवको मोहित कर रही थी। उन स्त्रियोंने श्रीरामको मन-ही-मन पतिके रूपमें वरण कर लिया। उस समय सर्वज्ञ श्रीरामने उन समस्त स्त्रियोंको मन-ही-मन वर दिया- 'तुम सभी व्रजमें गोपियाँ होओगी और उस समय मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा ॥

 

फिर सीता और सैनिकोंके साथ रघुनाथजी अयोध्या पधारे। यह सुनकर अयोध्यामें रहनेवाली स्त्रियाँ उन्हें देखनेके लिये आयीं। श्रीरामको देखकर उनका मन मुग्ध हो गया। वे प्रेमसे विह्वल हो मूर्च्छित-सी हो गयीं। फिर वे श्रीरामके व्रतमें परायण होकर सरयूके तटपर तपस्या करने लगीं। तब उनके सामने आकाशवाणी हुई 'द्वापरके अन्तमें यमुनाके किनारे वृन्दावनमें तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे, इसमें संदेह नहीं है॥ जिस समय श्रीरामने पिताकी आज्ञासे दण्डकवन- की यात्रा की, सीता तथा लक्ष्मण भी उनके साथ थे और वे हाथमें धनुष लेकर इधर-उधर विचर रहे थे। वहीं बहुत-से मुनि थे। उनकी गोपाल-वेषधारी भगवान्‌के स्वरूपमें निष्ठा थी। रासलीलाके निमित्त वे भगवान्‌का ध्यान करते थे। उस समय श्रीरामकी युवा अवस्था थी- वे हाथमें धनुष-बाण धारण किये हुए थे। जटाओंके मुकुटसे उनकी विचित्र शोभा थी। अपने आश्रमपर पधारे हुए श्रीराममें उन मुनियोंका ध्यान लग गया। (वे ऋषिलोग गोपाल-वेषधारी भगवान्‌के उपासक थे) अतः दूसरे ही स्वरूपमें आये हुए श्रीरामको देखकर सबके मनमें अत्यन्त आश्चर्य हो गया। उनकी समाधि टूट गयी और देखा तो करोड़ों कामदेवोंके समान सुन्दर श्रीराम दृष्टिगोचर हुए। तब वे बोल उठे- 'अहो! आज हमारे गोपालजी वंशी एवं बेंतके बिना ही पधारे हैं।' इस प्रकार मन-ही- मन विचारकर सबने श्रीरामको प्रणाम किया और उनकी उत्तम स्तुति करने लगे ॥

 

तब श्रीरामने कहा- 'मुनियो ! वर माँगो।' यह सुनकर सभीने एक स्वरसे कहा- 'जिस भाँति सीता आपके प्रेमको प्राप्त हैं, वैसे ही हम भी चाहते है ॥ ५१ ॥

श्रीराम बोले- यदि तुम्हारी ऐसी प्रार्थना हो कि जैसे भाई लक्ष्मण हैं, वैसे ही हम भी आपके भाई बन जायँ, तब तो आज ही मेरेद्वारा तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है; किंतु तुमने तो 'सीता' के समान होनेका वर माँगा है। अतः यह वर महान् कठिन और दुर्लभ है; क्योंकि इस समय मैंने एकपत्नी-व्रत धारण कर रखा है। मैं मर्यादाकी रक्षामें तत्पर रहकर 'मर्यादापुरुषोत्तम' भी कहलाता हूँ। अतएव तुम्हें मेरे वरका आदर करके द्वापरके अन्तमें जन्म धारण करना होगा और वहीं मैं तुम्हारे इस उत्तम मनोरथको पूर्ण करूँगा ॥ इस प्रकार वर देकर श्रीराम स्वयं पञ्चवटी पधारे। वहाँ पर्णकुटीमें रहकर वनवासकी अवधि पूरी करने लगे। उस समय भीलोंकी स्त्रियोंने उन्हें देखा। उनमें मिलनेकी उत्कट इच्छा उत्पन्न होनेके कारण वे प्रेमसे विह्वल हो गयीं। यहाँतक कि श्रीरामके चरणोंकी धूल मस्तकपर रखकर अपने प्राण छोड़नेकी तैयारी करने लगीं। उस समय श्रीराम ब्रह्मचारीके वेषमें वहाँ आये और इस प्रकार बोले- 'स्त्रियो ! तुम व्यर्थ ही प्राण त्यागना चाहती हो; ऐसा मत करो। द्वापरके शेष होनेपर वृन्दावनमें तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।' इस प्रकारका आदेश देकर श्रीरामका वह ब्रह्मचारी रूप वहीं अन्तर्हित हो गया ॥

तत्पश्चात् श्रीरामने सुग्रीव आदि प्रधान वानरोंकी सहायतासे लङ्कामें जाकर रावण-प्रभृति राक्षसोंको परास्त किया। फिर सीताको पाकर पुष्पक विमान- द्वारा अयोध्या चले गये। राजाधिराज श्रीरामने लोकापवादके कारण सीताको वनमें छोड़ दिया। अहो ! भूमण्डलपर दुर्जनोंका होना बहुत ही दुःखदायी है। जब-जब कमललोचन श्रीराम यज्ञ करते थे, तब-तब विधिपूर्वक सुवर्णमयी सीताकी प्रतिमा बनायी जाती थी। इसलिये श्रीराम-भवनमें यज्ञ-सीताओंका एक समूह ही एकत्र हो गया। वे सभी दिव्य चैतन्य- घनस्वरूपा होकर श्रीरामके पास गयीं। उस समय श्रीरामने उनसे कहा- 'प्रियाओ ! मैं तुम्हें स्वीकार नहीं कर सकता।' वे सभी प्रेमपरायणा सीता-मूर्तियाँ दशरथनन्दन श्रीरामसे कहने लगीं- 'ऐसा क्यों हम तो आपकी सेवा करनेवाली हैं। हमारा नाम भी मिथिलेक्षकुमारी सीता है और हम उत्तम ब्रतका आचरण करनेवाली सतीयाँ भी हैं। फिर हमें आप ग्रहण क्यों नहीं करते? यज्ञ करते समय हम आपकी अर्धाङ्गिनी बनकर निरन्तर कार्योंका संचालन करती रही हैं। आप धर्मात्मा और वेदके मार्गका अवलम्बन करनेवाले हैं, यह अधर्मपूर्ण बात आपके श्रीमुखसे कैसे निकल रही है? यदि आप शीघ्र हाथ पकड़कर उसे त्यागते हैं तो आपको पापका भागी होना पड़ेगा। श्रीराम बोले— सतीयों ! तुमने मुझसे जो बात कही है, वह बहुत ही उचित और सत्य है। परंतु मैंने 'एकपत्नीव्रत' धारण कर रखा है। सभी लोग मुझे 'राघव' कहते हैं। अतः नियमको छोड़ भी नहीं सकता। एकमात्र सीता ही मेरी सहधर्मिणी है। इसलिए तुम सभी प्रारब्ध के अनुसार श्रेष्ठ व्रजवधुएं धारणकर, वहीं तुम्हारी मन:कामना पूर्ण करूँगा।

 

इस प्रकार ये यज्ञ स्थापित सीता ब्रज में गोपियाँ हुयी।