तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर

  • Updated: Dec 17 2023 06:34 PM
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर

तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर

तिरूपति वेंकटेश्वर मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश के तिरूपति जिले के पहाड़ी शहर तिरुमला में स्थित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर को समर्पित, देवता को कलियुग की चुनौतियों से मानवता को राहत देने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। कलियुग वैकुंठ के नाम से मशहूर इस मंदिर का प्रबंधन आंध्र प्रदेश सरकार की देखरेख में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) द्वारा किया जाता है।

वेंकटेश्वर, जिन्हें बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू भक्ति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मंदिर के विभिन्न उपनाम हैं, जिनमें तिरुमाला मंदिर, तिरुपती मंदिर और तिरूपति बालाजी मंदिर शामिल हैं। ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि 5वीं शताब्दी तक, तिरुपति ने खुद को एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित कर लिया था, इसके निर्माण में चोल, होयसला और विजयनगर राजाओं के वित्तीय योगदान से सहायता मिली थी।

मंदिर से जुड़ी मान्यताओं में यह धारणा शामिल है कि विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर, तिरुमाला के करीब स्थित स्वामी पुष्करणी झील के पास रहते थे। यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी, जिसका नाम वेंकटाद्रि है, पर गर्व से खड़ा है, जो शेषनाग के सात फनों का प्रतीक है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने इस पहाड़ी पर चढ़कर भगवान श्रीनिवास से आशीर्वाद प्राप्त किया और 120 वर्ष की आयु तक भगवान वेंकटेश्वर की प्रसिद्धि फैलाने के लिए जीवित रहे।

यह मंदिर इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसकी जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हुई हैं। यह क्षेत्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक प्रमाण है, जो दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करता है। भगवान वेंकटेश्वर की स्थायी कथा और तिरुपति की पवित्रता दिव्य सांत्वना चाहने वालों के दिलों को मोहित करती रहती है।

तिरुपति के अन्य मंदिर

श्री पद्मावती समोवर मंदिर

तिरुचनूर (इसे अलमेलुमंगपुरम भी कहते हैं) तिरुपति से पांच किमी. दूर है। यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर विष्णु की पत्नी श्री पद्मावती लक्ष्मी जी को समर्पित है। कहा जाता है कि तिरुमला की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते।

तिरुमला में सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक कल्याणोत्सव मनाया जाता है। यहां दर्शन सुबह 6.30 बजे से शुरु हो जाता हैं। शुक्रवार को दर्शन सुबह 8बजे के बाद शुरु होता हैं। तिरुपति से तिरुचनूर के बीच दिनभर बसें चलती हैं।

श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर

श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं। यह मंदिर तिरुपति का मुख्‍य आकर्षण है। इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी। गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान ही होते हैं। वार्षिक बह्मोत्‍सव वैसाख मास में मनाया जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर शामिल है। मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है। दर्शन का समय है- प्रात: 9.30 से दोपहर 12.30, दोपहर 1.00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7.00 से रात 8.45 बजे तक

श्री कोदंडरामस्वमी मंदिर

यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है। यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है। उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर

कपिला थीर्थम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और थीर्थम है। मा यह मूर्ति कपिला मुनि द्वारा स्थापित की गई था और इसलिए यहां भगवान शिव को कपिलेश्वर के रूप में जाना जाता है। यह तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है। यह तिरुपति शहर से तीन किमी.दूर उत्तर में, तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे ओर तिरुमाला जाने के मार्ग के बीच में स्थित है कपिल तीर्थम जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं ओर सरलता से उपलब्ध भी है।

यहां पर कपिला तीर्थम नामक पवित्र नदी भी है। जो सप्तगिरी पहाड़ियों में से बहती पहाड़ियों से नीचे कपिल तिर्थम मे आती हैं जो अति मनोरम्य लगता हैं। इसे अलिपिरि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर श्री वेनुगोपाल ओर लक्ष्मी नारायण के साथ गौ माता कामधेनु कपिला गाय का हनुमानजी का अनुपम मंदिर भी स्थित हैं।

यहां महाबह्मोत्‍सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। वर्षा ऋतु में झरने के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है।

श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर

नगलपुरम का यह मंदिर तिरुपति से 70 किमी दूर है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मत्‍स्‍य अवतार लेकर सोमकुडु नामक राक्षस का यहीं पर संहार किया था। मुख्य गर्भगृह में विष्णु की मत्स्य रूप में प्रतिमा स्‍थापित है जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं। भगवान द्वारा धारण किया हुआ सुदर्शन चक्र सबसे अधिक आकर्षक लगता है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा श्री कृष्णदेव राय ने करवाया था। यह मंदिर विजयनगर की वास्तुकला के दर्शन कराता है। मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव ब्रह्मोत्सव और सूर्य पूजा है। यह पूजा फाल्‍गुन मास की 12वीं, 13वीं और 14वीं तिथि को होती है। इस दौरान सूर्य की किरण प्रात: 6बजे से 6.15 मिनट तक मुख्य प्रतिमा पर पड़ती हैं। ऐसा लगता है मानो सूर्य देव स्वयं भगवान की पूजा कर रहे हों।

स्वामी पुष्करिणी

इस पवित्र जलकुंड के पानी का प्रयोग केवल मंदिर के कामों के लिए ही किया जा सकता है। जैसे भगवान के स्नान के लिए, मंदिर को साफ करने के लिए, मंदिर में रहने वाले परिवारों (पंडित, कर्मचारी) द्वारा आदि। कुंड का जल पूरी तरह स्वच्छ और कीटाणुरहित है। यहां इसे पुन:चक्रित किए जाने व्यवस्था की भी व्‍यवस्‍था की गई है।

माना जाता है कि वैकुंठ में विष्णु पुष्‍करिणी कुंड में ही स्‍नान करते है, इसलिए श्री गरुड़जी ने श्री वैंकटेश्वर के लिए इसे धरती पर लेकर आए थे। यह जलकुंड मंदिर से सटा हुआ है। यह भी कहा जाता है कि पुष्करिणी के दर्शन करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और भक्त को सभी सुख प्राप्त होते हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व भक्त यहां दर्शन करते हैं। ऐसा करने से शरीर आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं।