छठ पर्व
छठ पूजा एक हिन्दू त्योहार है जो प्रायः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और विशेषकर पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार अब अन्य क्षेत्रों में भी हो रहा है। यह पूजा विशेष रूप से सूर्य देवता (सूर्य भगवान) और छठी मैया (छठी देवी) की पूजा के लिए जानी जाती है और इसे छठी मैया के पूजन के रूप में भी जाना जाता है। ये पर्व मैथिलि, मगही और भोजपुरी लोगों के लिए साल का सबसे बड़ा पर्व होता है। छठ पर्व न सिर्फ बिहार में अपितु सारे भारत में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है और अब ये एक सांस्कृतिक पर्व बन चूका है।
छठ पूजा की शुरुआत:
छठ पूजा का आयोजन भाद्रपद और कार्तिक मास के बीच की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। यह पूजा पांच दिनों तक चलती है, जिसमें पहले चार दिन व्रती व्रत रखते हैं, और पांचवें दिन सूर्योदय के समय नहाते हुए, सूर्य और छठी मैया की पूजा करते हैं।
छठ पूजा का महत्त्व:
छठ पूजा का महत्त्व बहुत अधिक है, और इसे सूर्य भगवान की कृपा, स्वास्थ्य, और खुशियों की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। यह पूजा विशेष रूप से बनारस, पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, और दरभंगा जैसे स्थानों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
छठ पूजा की विधि:
नहाई खाई (बड़ी नहाई): छठ पूजा की शुरुआत बड़ी नहाई खाई से होती है, जिसमें व्रती व्यक्ति अपने घर के पास के नदी या तालाब में जाकर नहाते हैं।
खाई:
नहाई खाई के बाद, व्रती खाई में जाकर प्रशाद का भोग बनाते हैं, जिसमें गुड़, दूध, और देसी घी का उपयोग होता है।
खारा:
खाई के बाद, व्रती खारा (नमक और चावल का मिश्रण) का सेवन करते हैं।
अर्घ्य:
खारा खाने के बाद, व्रती व्रत के अंतर्गत सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
संध्या अर्घ्य:
शाम को सूर्यास्त के समय, व्रती संध्या अर्घ्य करते हैं।
पूजा की समाप्ति:
छठी मैया की मूर्ति के साथ सूर्योदय के समय, व्रती व्रत की समाप्ति के लिए पूजा करते हैं।
प्रासाद:
पूजा के बाद, प्रसाद में गुड़, चावल, और दूध का भोग सूर्य और छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
छठ पूजा में संगीत, नृत्य, और परंपरागत गाने की भी महत्ता होती है, जो लोगों को आपसी समर्थन में जोड़ता है और एक सामूहिक भावना बनाए रखता है।
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