गणेश चतुर्थी व्रत विवरण

  • Updated: Jul 06 2024 11:12 AM
गणेश चतुर्थी व्रत विवरण

गणेश चतुर्थी व्रत विवरण

जब भगवान शिव ने गजमुख के साथ गणेश जी को नया जीवन प्रदान किया था तब गणेश जी के जीवित हो जाने पर सर्वत्र हर्ष छा गया। सभी बहुत प्रसन्न हुए। सभी देवता उन्हें तरह-तरह के वरदान दे रहे थे। तब देवों के देव महादेव जी ने भी गणेश पर अपनी विशेष कृपा करते हुए कहा-

हे गिरिजानंदन! तुम मेरे दूसरे पुत्र हो। तुम सभी के द्वारा पूजित और आदरणीय होगे। तुम जगदम्बा के ही तेज से उत्पन्न हुए हो, इसलिए तुम बहुत शक्तिशाली और वीर हो। इस संसार का प्रत्येक प्राणी तुम्हारी वीरता और साहस को स्वीकार करेगा। आज से तुम मेरे सभी शिव गणों के अध्यक्ष हो। ये सभी तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे। आज से तुम गणपति नाम से भी जाने जाओगे। ऐसा कहकर सर्वेश्वर भगवान शिव दो क्षण मौन रहे और फिर बोले- हे गणपति! तुम्हारा जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सूर्योदय के समय देवी पार्वती के शुद्ध हृदय से हुआ है। अतः जो कोई इस दिन पूर्ण श्रद्धा से तुम्हारा स्मरण करके व्रत करेगा, उसे सभी सुख प्राप्त होंगे।

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखें। प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। धातु, मूंगा या मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसे स्थापित करें। फिर दिव्य गंध, चंदन और सुगंधित फूलों से मूर्ति की पूजा करें। रात्रि के समय बारह इंच लंबी और तीन गांठों वाली एक सौ आठ दूर्वाओं से गणपति का पूजन करें। उसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, अर्घ्य अर्पित करके गणपति का पूजन करें। फिर बालक चंद्रमा का पूजन करें। फिर ब्राह्मणों को उत्तम भोजन खिलाएं। स्वयं नमक रहित भोजन ही करें। इस प्रकार इस उत्तम गणेश चतुर्थी व्रत को करें।

 

व्रत करते हुए जब एक वर्ष पूरा हो जाए, तब इस व्रत को भक्तिपूर्वक करना चाहिए। समापन में बारह ब्राह्मणों को भोजन कराएं। व्रत का पारण करते समय पहले से स्थापित कलश के ऊपर गणेशजी की मूर्ति स्थापित करें। यज्ञ वेदी बनाकर उस पर अष्टदल कमल बनाकर हवन करें। फिर मूर्ति के सामने दो स्त्रियों और दो बालकों को बैठाकर विधिपूर्वक उनका पूजन करें। फिर उन्हें आदरपूर्वक भोजन कराएं। उनके साथ पूरी रात भक्तिपूर्वक जागरण करें। प्रातःकाल पुनः गणपति की पूजा करें। उनका पूजन करने के पश्चात उन्हें विसर्जित कर दें। फिर बालकों से आशीर्वाद लें तथा उन्हें स्वस्ति वाचन करने को कहें तथा व्रत पूर्ण करने के लिए श्री गणेश को पुष्प अर्पित करें। फिर भक्तिपूर्वक हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करें।

 

हे गणेश! इस प्रकार जो भी व्यक्ति भक्तिपूर्वक आपके पास आएगा तथा प्रतिदिन आपका पूजन करेगा, उसके सभी कार्य सफल होंगे तथा उसे सभी मनोवांछित फल प्राप्त होंगे।

 

गणेश का पूजन सच्चे मन से सिंदूर, चंदन, चावल और केतकी के फूलों से करने वाले के सभी विघ्नों और क्लेशों का नाश हो जाएगा। उस मनुष्य के अभीष्ट कार्य अवश्य ही सिद्ध होंगे। यह गणेश चतुर्थी व्रत सभी स्त्री एवं पुरुषों के लिए श्रेष्ठ है। विशेषतः जो मनुष्य अभ्युदय की इच्छा रखते हैं, उन्हें उत्तम भक्तिभावना से इस व्रत को अवश्य करना चाहिए क्योंकि गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले मनुष्य की सभी इच्छाएं और कामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए सभी मनुष्यों को इस श्रेष्ठ व्रत को पूरा करना चाहिए तथा सदैव तुम्हारी भक्तिभाव से आराधना करनी चाहिए। इस प्रकार त्रिलोकीनाथ भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को सभी मनुष्यों तथा देवताओं द्वारा पूजित होने का उत्तम आशीर्वाद प्रदान किया। भगवान शिव के वचनों से सभी देवता और ऋषि-मुनि बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें अधभुत आनंद की अनुभूति हुयी। सभी ने शिव-पार्वती पुत्र गणपति की आराधना की। यह देखकर देवी पार्वती की खुशी की कोई सीमा न रही। वे देवताओं को अपने पुत्र गणेश का पूजन करते देख मन ही मन भगवान शिव के चरणों का ध्यान करते हुए उनका धन्यवाद करने लगीं। उनका सारा क्रोध पल भर में ही शांत हो गया था। उस समय सभी दिशाओं में सुमधुर दुंदुभियां बजने लगीं। अप्सराएं सहर्ष नृत्य करने लगीं। सुंदर, मंगल गान होने लगे तथा श्रीगणेश जी पर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। अपने पुत्र को गणाधीश बनाए जाने पर माता पार्वती फूली नहीं समा रही थीं। उस समय चारों ओर उत्सव होने लगा। तत्पश्चात उस समय वहां उपस्थित समस्त देवता और ऋषि-मुनि उस स्थान के निकट गए जहां भगवान शिव और देवी पार्वती अपने पुत्र गणेश के साथ विराजमान थे। देवताओं और ऋषियों ने भक्तिभावना से उन्हें नमस्कार किया और उनकी स्तुति करने लगे। फिर शिवजी से विदा लेकर सब अपने-अपने धामों को चले गए। फिर मैं और श्रीहरि भी उनसे विदा लेकर अपने लोकों को लौट गए। जो मनुष्य शुद्ध हृदय से सावधान होकर इस परम मंगलकारी कथा को सुनता है, वह सभी मंगलों का भागीदार हो जाता है। यह गणेश चतुर्थी व्रत की उत्तम कथा पुत्रहीनों को पुत्र, निर्धनों को धन, रोगियों को आरोग्य, अभागों को सौभाग्य प्रदान करती है। जिस स्त्री का पति उसे छोड़कर चला गया हो, गणेश की आराधना के प्रभाव से पुनः उसके पास लौट आता है। दुखों और शोकों में डूबा मनुष्य इस उत्तम कथा को सुनकर शोक रहित होकर सुखी हो जाता है। जिस मनुष्य के घर में श्रीगणेश की महिमा का वर्णन करने वाले उत्तम ग्रंथ रहते हैं, उस घर में सदा मंगल होता है। श्रीगणेश की कृपा अपने भक्तों पर सदा रहती है और वे अपने भक्तों के कार्य में आने वाले सभी विघ्नों का विनाश कर उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।